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चतुर्थोऽङ्कः
७७ कालपाश:- वराहतुण्ड ! प्रातरयं राजकुलाय दर्शनीयः। साम्प्रतं पुनर्धमयत्वेनं सर्वासु नगररथ्यासु । वयमपि तस्करान्वेषणखेदं विनोदयितुं व्रजामः।।
(इति निष्क्रान्ताः सर्वे।) ।।चतुर्थोऽङ्कः समाप्तः।।
कालपाश-वराहतुण्ड! इसको कल प्रात:काल राजदरबार में प्रस्तुत करना है। इस समय इसको नगर के सभी मार्गों पर घुमाओ। मैं भी चोर के अन्वेषण से उत्पन्न थकान को मिटाने जा रहा हूँ।।
(इसके बाद सभी निकल जाते हैं।)
।।चतुर्थ अङ्क समाप्त।।
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