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चतुर्थोऽङ्कः
६५ स्वामी?, किमर्थं च प्रतिरथ्यमाबद्धकवचकचकैः कैश्चिदाकष्टकरालकरवालैः कैश्चिदारोपितचापैः कैश्चित् परिघपाणिभिः पत्तिभिः प्रतिरुध्यते स्वेच्छाप्रचारी प्रतिभयचकितेक्षण: प्राणिगणः? द्विजः- महाभाग!
इयं सा सिंहलद्वीपभूतधात्रीललाटिका।
श्रीनटीरङ्गशालेव रङ्गशालाभिधा पुरी।।१०।। मित्रानन्दः- ततस्ततः? द्विजःद्विषां यशःशीतमयूखराहुर्महीपतिर्विक्रमबाहुरेताम्।
प्रतापपीतद्युतिपीतविश्ववसुन्धरादौस्थ्यकथः प्रशास्ति।।११।। कौमुदी- तदो तदो? (ततस्ततः?)
इसका राजा कौन है? तथा किस कारण स्वेच्छाचारी (किन्तु) भय से चकित दृष्टि वाले प्राणिगण रथारूढ़ कवचकञ्चुक धारण किये हुए, भयङ्कर तलवार ताने हुए, धनुष पर तीर चढ़ाए हुए तथा विशाल भुजाओं वाले सैनिकों द्वारा कुचले जा रहे हैं?
द्विज-महाभाग !
यह सिंहलद्वीप नामक प्रदेश के मस्तक की शोभा (मुकुटस्वरूपा) नटी की सुन्दर रङ्गशाला के समान ‘रङ्गशाला' नाम की नगरी है।।१०।।
मित्रानन्द-फिर उसके बाद?
द्विज-इस रङ्गशाला नगरी (नामक राजधानी वाले सिंहलद्वीप) पर अपने शत्रुओं के यश:स्वरूप चन्द्रमा के लिए राहुतुल्य और अपने प्रतापानल द्वारा सम्पूर्ण भूमण्डल की अस्वस्थता की चर्चा (दुःखद स्थिति) को ध्वस्त कर देने वाले महाराज विक्रमबाहु शासन कर रहे हैं।।११।।
कौमुदी-फिर उसके बाद?
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