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________________ ६४ कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् एते ते रमयन्ति कोकिलकुलव्याहारवाचालितोद्यान क्षोणिरुहः पुरीपरिसराः श्रोत्राणि नेत्राणि च ।।८।। (पुरोऽवलोक्य) धावं धावमयं पुरः पुरजनः किं कान्दिशीको भ्रमत्येषोऽपि श्रुतिदुर्भगः प्रतिदिशं हक्कानिनादः कथम् ? । रुध्यन्तेऽध्वनि किं पदातिपटलैरागन्तवो जन्तवः ?, कस्मात् कावचिका निकुञ्जकुहराण्यावृण्वते वाजिभिः ? । । ९ । । भवतु तावत्, एतं सम्मुखीनमापतन्तं प्रवयसं द्विजन्मानमुपसृत्य पृच्छामि । (ततः प्रविशति द्विज: । ) (मित्रानन्दः प्रणमति । ) द्विज:- स्वस्ति यजमानाय । मित्रानन्दः— (सविनयम्) आर्य! इदानीमेव देशान्तरतः समुपागतोऽहम्, अतो न विदुरः कस्याप्यत्रत्यवृत्तान्तस्य । तत् कथय केयं पुरी?, कोऽस्यां कलकलध्वनि (सुनायी पड़ रही है) और कहीं उपवन में वृक्ष कोयलों की कूक से शब्दायमान हो रहे हैं— इस प्रकार यह नगर परिसर आँखों एवं कानों को आनन्दित कर रहा है । ८ ।। ( सामने देखकर) सामने यह भयभीत नगरवासी दौड़ते-दौड़ते क्यों भाग रहा है ? सभी दिशाओं में यह श्रुतिकटु हाहाकार ध्वनि क्यों हो रही है? मार्ग पर आने-जाने वाले लोग सैनिकों द्वारा क्यों कुचले जा रहे हैं? और कवचधारी (सैनिकगण) किस कारण घोड़ों द्वारा लतामण्डपों को उजाड़ रहे हैं ? ।। ९ । अच्छा तो सामने गिरे हुए इस वृद्ध ब्राह्मण के समीप जाकर पूछता हूँ । (तत्पश्चात् ब्राह्मण प्रवेश करता है | ) (मित्रानन्द उसे प्रणाम करता है | ) द्विज- यजमान का कल्याण हो । मित्रानन्द - (विनयपूर्वक) आर्य! मैं अभी-अभी परदेश से आया हूँ, अतः यहाँ का कुछ भी वृत्तान्त मुझे ज्ञात नहीं। अतः मुझे बताइये कि यह कौन सी नगरी है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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