SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थोऽङ्कः (कौमुदी सलज्जमधोमुखी भवति । ) (विचिन्त्य सखेदम्) मित्रानन्द: सुखाकरोति संयोगस्तथा न तव कौमुदि ! | मैत्रेयस्य परित्यागो यथा दुःखाकरोति माम् ।। ७ ।। कौमुदी - अज्जउत्त! अलाहि विसाएण । जधामंतिदं करिस्सदि मित्तेओ । संघडिस्सदि सिंहलदीवचिट्ठाणं अम्हाणं । (आर्यपुत्र! अलं विषादेन । यथामन्त्रितं करिष्यति मैत्रेयः । सङ्घटिष्यते सिंहलद्वीपस्थितानामस्माकम् । ) मित्रानन्दः – प्रिये! यद्यपेतश्रमाऽसि तदा नगराभ्यन्तरे गमनाय प्रक्रमस्व । (कौमुदी करण्डकमादाय उत्थानं नाटयति । ) (उभौ नगराभिमुखमुपसर्पतः । ) मित्रानन्दः— (सानन्दम्) प्रिये! पश्य पश्य, विश्राम्यत्पथिकाः क्वचित् क्वचिदपि क्रीडाचलोपत्यकाक्रीडत्पौरपुरन्ध्रयो, गिरिसरिज्झङ्कारताराः क्वचित् । (कौमुदी लज्जा से मुख नीचे झुका लेती है | ) मित्रानन्द - ( सोचकर खिन्नतापूर्वक) कौमुदि ! मुझको तुम्हारा संयोग (मिलन) उतना सुखी नहीं कर रहा है, जितना कि ( अपने प्रिय मित्र) मैत्रेय का वियोग दुःखी कर रहा है ।। ७ ।। ६३ कौमुदी - आर्यपुत्र ! आप दुःखी न हों। मैत्रेय (हमारे बीच हुई) मन्त्रणा के अनुसार ही कार्य करेगा। वह हमसे सिंहलद्वीप में अवश्य मिलेगा । मित्रानन्द - प्रिये ! तुम्हारी थकान मिट चुकी हो तो नगर में प्रवेश करने की तैयारी करो। (कौमुदी टोकरी लेकर उठने का अभिनय करती है | ) ( दोनों नगर की तरफ बढ़ते हैं ।) मित्रानन्द - (आनन्दपूर्वक) प्रिये! देखो देखो, Jain Education International कहीं पर विश्राम करते हुए पथिकजन ( दिखलाई पड़ रहे हैं ), कहीं क्रीड़ा-पर्वतों (आमोद हेतु निर्मित बनावटी पर्वतों) की उपत्यकाओं (तलहटी) में नगरवधुएँ क्रीड़ा करती हुई ( दिखलाई पड़ रही हैं), कहीं पहाड़ी नदियों की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy