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तृतीयोऽङ्कः
(प्रविश्य) बटुः- (पुरोधसंप्रति) लग्नसमय इदानीम्, ततः समाप्यतां कौतुकविधिः, प्रतिरुध्यतां कोलाहलः, अवधीयतां झल्लरीझात्कारे। (पुरोधाः सरभसमुत्थाय हस्तसंज्ञया कोलाहलं प्रतिरुणद्धि।)
(नेपथ्ये झल्लरीझात्कारः।) पुरोधा:- पुण्याहम् पुण्याहम् (इत्युच्चारयन् वधूवरस्य पाणी योजयति।)
(नेपथ्ये तापस्यो मङ्गलानि गायन्ति।) (सर्वे सानन्दं वधूवरस्य शिरसि दूर्वाऽक्षतादीनि प्रक्षिपन्ति।) पुरोधाः- (वधूवरं प्रति) प्रदक्षिणीकुरुतां भगवन्तं परिणयनसाक्षिणमाशशुक्षणिम्।
(उभौ तथा कुरुतः) कुन्दलतिका- (मित्रानन्दं प्रति)
(प्रवेश कर) बटु-(पुरोहित से) लग्न-समय हो गया है, अत: कौतुकविधि समाप्त करें, कोलाहल शान्त करवायें और झल्लरी की झङ्कार पर ध्यान दें। (पुरोहित शीघ्रता से उठकर हाथ के इशारे से कोलाहल रोकता है।)
. (नेपथ्य में झल्लरी की झङ्कार गूंजती है।) पुरोहित-मैं पवित्र हो गया, पवित्र हो गया (यह कहता हुआ वर और वधू का हाथ मिलाता है।)
(नेपथ्य में तापसियाँ मङ्गलगीत गाती हैं।) (सभी आनन्द से वर-वधू के शिर पर दूर्वाक्षत आदि फेंकते हैं।) - पुरोहित-(वधू एवं वर से) आप दोनों अपने विवाह के साक्षी अग्निदेव की प्रदक्षिणा करें।
(दोनों वैसा करते हैं।) कुन्दलता-(मित्रानन्द से)
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