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________________ तृतीयोऽङ्कः (नेपथ्ये) इदानीं सर्वस्यापि कर्मणः पर्यन्तः सञ्जातः । गजपादः – (सभयमात्मगतम्) केयमुपश्रुतिः कुलपतेरनिष्टं सूचयति ? (उपसृत्य कुन्दलता प्रणमति । ) कुलपतिः - वत्से! गत्वा ब्रूहि आर्यां गन्धमूषिकाम् । यथा- विवाहवेदिका - मागत्य वधूवरोचितानि कर्माणि कारय । (कुन्दलतिका निष्क्रान्ता । ) (प्रविश्य) मर्कटवर्णः - भगवन्! इदानीं सर्वस्यापि कर्मणः पर्यन्तः सञ्जातः । तदागच्छत यूयं येन पाणिग्रहणमाधीयते । ( इति पुरो निधाय विज्ञपयति । ) (सर्वे परिक्रामन्ति ।) मर्कटवर्णः - भगवन्! इदं वधूवरम्, अयं पुरोधाः, इयं भगवती गन्धमूषिका कुन्दलता च। (नेपथ्य में ) अब समस्त तैयारियाँ पूरी हो गयीं । गजपाद - (भयपूर्वक मन में) यह कौन सी ध्वनि है जो कुलपति के अनिष्ट को सूचित कर रही है? वरवधू ५१ (समीप जाकर कुन्दलता प्रणाम करती है | ) कुलपति -पुत्रि ! जाकर गन्धमूषिका से कहो कि विवाहमण्डप में आकर के अभीष्ट कार्यों को सम्पादित करे । (कुन्दलतिका निकल जाती है । ) ( प्रवेश करके) मर्कटवर्ण - भगवन्! सभी तैयारियाँ पूर्ण हो गयीं, अतः अब आप आयें जिससे पाणिग्रहण-संस्कार सम्पन्न हो जाए। (यह कह कर कुलपति को आगे करके मार्ग दिखाता है | ) एवं कुन्दलता हैं। (सभी परिक्रमा करते हैं । ) मर्कटवर्ण - भगवन्! ये वर-वधू, यह पुरोहित और ये देवी गन्धमूषिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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