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________________ ४८ कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् कौमुदी- सिंहलदीवे गंतव्वं। (सिंहलद्वीपे गन्तव्यम् ।) मित्रानन्दः- मित्रमप्यावयोस्तत्रैव सङ्घटिष्यते। कुन्दलता- (मित्रानन्दं प्रति) तह कह वि जणो वेसाहिं अत्थलोहेण अत्थि वेलविओ। जह पिम्मभिंभलासु वि न तासु वीसासमोअरइ।।१२।। (तथा कथमपि जनो वेश्याभिरर्थलोभेनास्ति विडम्बितः। यथा प्रेमविह्वलास्वपि न तासु विश्वासमवतरति ।।) तदो मा खु तुम्हे अवरसस्थवाहपडिवत्तिसवणतरलिदहिदया निसग्गणिग्गएसु वि कोमुईवयणेसु वीसंभं न करिस्सध। (ततो मा खलु यूयम् अपरसार्थवाहप्रतिपत्तिश्रवणतरलितहृदया निसर्गनिर्गतेष्वपि कौमुदीवचनेषु विश्रम्भं न करष्यिथा) मैत्रेयः-- कुन्दलतिके! किमेवं सार्थवाहस्य चातुरीवैमुख्यमुद्भावयसि? स्नुहीगवाऽर्कदुग्धानां दृश्यं यदपि नान्तरम्। तथाप्यास्वादपार्थक्यं जिह्वाऽऽख्याति पटीयसी।।१३।। कौमुदी-सिंहलद्वीप में जाना है। मित्रानन्द- हमारा मित्र भी वहीं मिल जायेगा। कुन्दलता-(मित्रानन्द से) कुछ लोग वेश्याओं द्वारा धनलोलुपतावश इस प्रकार ठगे गये हैं कि कुछ वेश्याओं के प्रेमविह्वला होने पर भी उनके प्रति उनका विश्वास नहीं होता।।१२।। __ अत: आप लोग अन्य सार्थवाहों की दुर्दशा के श्रवण से द्रवित-हृदय होकर कौमुदी की स्वाभाविकरूप से कही गई बातों पर अविश्वास न करें। मैत्रेय-कुन्दलतिके! क्यों ऐसा कहकर सार्थवाह की कौशलहीनता का प्रतिपादन कर रही हो? यद्यपि स्नुही (सेंहुड़), गाय और मन्दार के दूधों के रङ्ग में स्पष्ट अन्तर नहीं होता, तथापि स्वादपटु जिह्वा उनके स्वाद के अन्तर को बता देती है।।१३।। - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002080
Book TitleKaumudimitranandrupakam
Original Sutra AuthorRamchandrasuri
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Culture
File Size8 MB
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