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क्षीयन्ते यत्र सा ज्ञेया तुरीयेति दशा बुधैः ।। समाधिसाधनं शास्त्राभ्यासतो न हि लभ्यते। गुरोर्विज्ञाततत्वात्तु प्राप्तुं शक्यमिति ध्रुवम् ।।
राजयोग संहिता, उद्धृत कल्याण साधना अंक पृ. १३५ २७. (क) श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ, खंड ९, पृ. १००
(पं. रूद्रदेव त्रिपाठी) (ख) आगतं शिववक्त्रेभ्यो, गतं च गिरिजामुखे। मतं च वासुदेवस्य, तत् आगम उच्यते ।।
ऊद्धृत, श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ, खंड ९, पृ. १०१ २८. (क) अस्य वामस्य सूक्तं तु जपेश्चान्यत्र वा जले। ब्रह्म इत्यादिकं दग्ध्वा विष्णुलोकं स गच्छति ।। ऋग्विधान
उद्धृत, कल्याण, शक्ति अंक, पृ. १४९ (ख) अस्त्रेमाः अनेमाः अनेद्याः अनवद्याः अनभ्यासास्ताः, उक्थ्यः सुनीथः पाकः वामः वयनमिति दश प्रशस्य नामानि ।।
उद्धृत, कल्याण, शक्ति अंक, (गोरखपूर) पृ. १४९ (ग) वामो मार्गः परम गहनो योगिनामप्यगम्यः ।
उद्धृत, कल्याण शक्ति अंक, पृ. १४९ (घ) कुलं शक्तिरिति प्रोक्तमकुलं शिव उच्यते। कुलाकुलस्य सम्बन्धः कौलमित्याभिधीयते ।।
योग दर्शन (पं. श्रीराम शर्मा) पृ. ७८ मुख्यतः पूजा के दो प्रकार बताये हैं : - बाह्म और परम। साधारण पूजा में बाह्य उपकरणों का प्रयोग होता है। तन्त्र में ६४ उपचार, १८ उपचार, १६ उपचार, १० उपचार एवं ५ उपचारों से पूजा का विधान
मन्त्रयोग (चमन गौ.) पृ. २८४-२८६ (ख) पूजा के अनेक प्रकार होते हैं : - आवाहन, आसन, स्नान, नैवेद्य,
आचमन, प्रदक्षिणा, गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, बलि, पान, अध्यं, प्रसाद।
__ मन्त्रयोग, पृ. २८९-२९४ (ग) तीन प्रकार की भी पूजा है :- उत्तम, मध्यम और अधम जिसे 'परा',
'परापरा' और 'अपरा' भी कहा जाता है । (वर्तमान में इसे सात्विक, राजसिक और तामसिक पूजा कहते हैं।)
मन्त्रयोग, (चमन गौ.) पृ. २९४
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ध्यान परंपरा में साधना का स्वरूप
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