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________________ और २) 'इल्मे सीना' = सम्प्रदाय की बुनियाद है । ६० सूफियों की साधना पद्धति :- मुख्यतः साधक (शिष्य) गुरु के माध्यम से निम्नलिखित चार अवस्थाओं को पार करके अल्लाह को प्राप्त करता है। इन मंजिलों को पार करने के प्रयासकाल को 'सूफी' 'मार्ग' या 'साधना पथ' कहते हैं। ये मंजिलें चार हैं । ६१ हार्दिक ज्ञान । 'इल्मे सीना ही तसव्वुफ की अर्थात् सूफी १) शरीअत :- इसके अन्तर्गत मुरीद (साधक) मुरशिद (गुरु) के मार्गदर्शक से तिलवत (कुरान पाठ), जिक्र (स्मरण), फिक्र (चिन्तन), समा (कीर्तन), अवराद (नित्य - प्रार्थना) से परमात्मा (परमसत्ता) को प्राप्त करने के लिये बैचेन रहता है। इसमें (शरीअत) सलात (प्रार्थना), जकात (दान), सौम (उपवास) और हज्ज का समावेश होता है। हृदय शुद्धि पर विशेष जोर है। २) तरीकत :- शरीअत अवस्था को पार करने पर तरीकत साधना पथ पर आरूढ होता है। इसमें साधक बाह्य क्रियाकलापों से ऊपर उठकर परमसत्ता का ध्यान करता है। इसमें विद्यमान साधक की अवस्था को 'मलकूत' कहते हैं। नफ्स (अहं भावना) को परास्त करके हृदय में 'म्वारिफ' = परमज्ञान को प्राप्त करता है। इसमें गुरु ही मार्गदर्शक होता है। गुरु कृपा से कुछ सोपानों को क्रमशः पार करके परमज्ञान का अधिकारी बनता है। सोपान का क्रम इस प्रकार है :- तोबा (पश्चाताप - अनुताप), जहर ( स्वेच्छा- दारिद्र्य), सब्र (संतोष), शुक्र (कृतज्ञता, धैर्य), रिआज (दमन), तव्वकुल (गुरुकृपा पर पूर्ण विश्वास), रजा (वैराग्य या तटस्थता) और मुहब्बत या इश्क । 4 ३) मारिफत :- तीसरी साधना पद्धति का प्रारंभ हृदयानुभूति से होता है। उसी को 'इश्क' 'वज्द' या 'वस्ल' कहते हैं। साधक इस अवस्था में अपने आपको भूल जाता है। यह साधना की उच्चतम अवस्था है। इसे 'जबरुक' कहते हैं। ४) हकीकत :- तीनों साधना हृदयंगम होने पर हकीकत की अवस्था प्राप्त होती है । यह सूफी साधना की पराकाष्ठा है। इसमें साधक सुख-दुःख से परे एकमात्र अल्लाह में ही मस्त रहता है। उसी का ध्यान करता है। ये चार साधना पद्धतियाँ सूफियों की मुख्य साधना पद्धति हैं। इसके अलावा और भी साधना पद्धतियाँ हैं - ६२ तवज्जह :- इसमें गुरु शिष्य को अपने सन्मुख बिठाकर एक सांस में १०१ बार अल्लाह का ध्यान कराता है। १८ Jain Education International ध्यान परंपरा में साधना का स्वरूप For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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