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७) शत्रु-मित्र पर समभाव रखना। ८) मन, प्राण और बुद्धि से परमेश्वर पर प्रेम करना तथा पड़ोसी का सम्मान
करना। ईसाई धर्म की साधना ही जीवन विकास की साधना है।
इस्लाम धर्म की साधना पद्धति :- इसके संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब थे। इस धर्म का विकास अरब में हुआ।
इस्लाम धर्म की साधना का आधार 'कुरान' है। इसे 'कुरान शरीफ' भी कहते हैं। इस ग्रंथ में बताये हुए सैद्धान्तिक और व्यवहारिक खण्डों के अनुसार पांच मौलिक साधना सूत्र हैं- १) अल्लाह में ही विश्वास करना, २) फरिश्ते (ईश्वराज्ञा पालक) में विश्वास करना, ३) कुरान में विश्वास करना, ४) देवदूतों में विश्वास करना और ५) निर्णय दिन, स्वर्ग, नरक में विश्वास करना। इस्लाम धर्म में पुनर्जन्म को नहीं मानते परन्तु 'मुकर' और 'नकीर' नामक फरिश्ता मृतक व्यक्ति के कर्मानुसार परीक्षा करके आत्मा को 'बरजख' में रखते हैं। 'बरजख' 'मृत्यु' और 'कयामत' के बीच की अवस्था है।
साधना पद्धति के सूत्राधार निम्नलिखित हैं-५९
१) मत का उच्चारण - अल्लाह के सिवाय दूसरा कोई ईश्वर नहीं है तथा मुहम्मद उसके देवदूत हैं।
२) नमाज पढ़ना - जिसमें 'वजू' की विधि बताई गयी है। वजू का अर्थ है शरीर शुद्धिकरण। 'शुक्रवार' को पवित्र मानते हैं। सामूहिक नमाज का विशेष महत्त्व।
३) जकात (खैरात)- यह तीसरी साधना पद्धति है जिसमें प्रत्येक मुसलमान का कर्तव्य है कि वह अपनी आय का एक अंश दान में व्यय करे।
४) रमजान के महिने में उपवास करना - रमजान के दिनों में रोजा रखना। रोजा से तात्पर्य है इन्द्रियों को वश में करना।
५) हज करना - पापों का प्रायश्चित्त, दान, दानी की संगति, मक्का यात्रा, रात्रियात्रा, यात्रा के समय गाड़ी के आगे रहना, शरीर शुद्धि आदि पद्धतियों के द्वारा अल्लाह की प्राप्ति करना।
इस्लाम धर्म की यही साधना पद्धति है। इस धर्म के चार संप्रदाय हैं। उनमें एक सूफी संप्रदाय है, जो प्रेमयोग की साधना पद्धति से अल्लाह याने परमात्मा को प्राप्त करते हैं। मुहम्मद साहब को दो प्रकार से ज्ञान मिला था- १) 'इल्मे सफीना' = किताबी ज्ञान जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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