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त्याग और सत् का आचरण ही इनका उद्देश्य है। इसी को पवित्र विचार, पवित्र वचन और पवित्र कार्य भी कहते हैं।५६
यहुदी धर्म की साधना :- इस धर्म का मूल ग्रंथ 'पुरानी बाइबिल है। उसके तीन विभाग हैं - १) तोरा, जिसमें दस आज्ञा का प्रतिपादन किया गया है, २) नवी, जिसमें साधना, प्रेम और अहिंसा का स्वरूप प्रतिपादन किया है, जो कि साधना का अंग है। और ३) नविश्ते, जिसमें जीवन का आदर्श स्पष्ट किया है। अतः यहुदी धर्म में बाइबिल के बाद 'तालमुद' का नाम ही विशेष प्रसिद्ध है।
यहदी धर्म की साधना पद्धति प्रेमयोग पर आधारित है। मन, वचन और काय की शुद्धता पर ही प्रेमयोग की नींव खड़ी है। क्योंकि मनोविजेता ही प्रेमयोग की साधना द्वारा यहोवा को प्राप्त कर सकता है। सत्य, करुणा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, श्रमनिष्ठा, भूमि की सेवा, दुखियों की सेवा, अनाथ दीन दुःखी की सेवा, विधवाओं की सेवा, सदाचार एवं पवित्रता प्रेम की साधना से ही प्राप्त हो सकता है।५७ मन, वचन और काय की शुद्धि ही इस धर्म की साधना पद्धति है। वह शुद्धिकरण प्रेम के माध्यम से होता है।
ईसाई धर्म की साधना :- ईसाई धर्म का उद्गम स्थान यहुदी धर्म है। ईसाइयों का धर्म ग्रंथ भी बाइबिल ही है। उसके दो विभाग हैं- १) पुरातन सुसमाचार (Old Testament) और २) नूतन सुसमाचार (New Testament)। पुरातन सुसमाचार सम्पूर्ण बाइबिल का तीन चौथाई भाग है और नूतन सुसमाचार ईसाई धर्म का मूल ग्रंथ है। इसमें ईसा के जीवन और उपदेशों का संकलन है।
ईसाई धर्म की साधना का मूल नैतिकता है। प्रेम की साधना से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। ईसाई धर्म की साधना पद्धति प्रेमयोग ही है। क्योंकि ईसा मसीह का कथन है कि बुराई का सामना बुराई से न करके प्रेम से करें। यदि कोई तुम्हारे दायें गाल पर थप्पड़ मारे तो उसके सामने बांया गाल खड़ा कर दो, मारने वाले के सामने प्रेम बरसाओ, प्रेम से शत्रु को मित्र बनाओ।५८
ईसाई धर्म की साधना पद्धति निम्नलिखित है :१) सदाचारी जीवन बिताना। २) क्षमा को जीवन का अलंकार बनाना। ३) प्रेम और अहिंसा का पालन करना। ४) सेवा और त्याग ही जीवन का आदर्श बनाना। ५) ईसा का पवित्र जीवन ही उसका प्रकाश स्तम्भ है। ६) सत्यमय जीवन बनाना।
ध्यान परंपरा में साधना का स्वरूप
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