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उल्लेख मिलता है। विषय और स्वयं की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए यद्यपि हम सभी पद्धतियों का उल्लेख नहीं कर सके हैं। तथापि कुछ प्रमुख साधना पद्धतियों का निर्देश करना इसलिये आवश्यक है कि मनुष्य कहीं भी रहे; किसी भी धर्म का पालन करे, और किसी भी काल में उसका जन्म हो, किसी न किसी स्वरूप में साधना की ओर उसका लक्ष्य खींच ही जाता है। इस प्रकार संसार में अनेक पद्धतियों के स्वरूप देखने को मिलते हैं। जैसा कि हमने पीछे निवेदन किया है कि साधना पद्धतियाँ मानवी मन को नियंत्रण में रखने का उपयोगी और सफल प्रयास है। और शताब्दियाँ बीत जाने के बाद भी धर्म के अनेक रूप विकसित होकर भी साधना पद्धतियाँ किसी न किसी रूप में उपलब्ध हैं और साधना करने वाले साधक भी मौजूद हैं।
इस विवेचन में हम संक्षेप में भारतीयेतर धर्मों की साधना पद्धतियों का कुछ उल्लेख करना चाहते हैं :
ताओ धर्म की साधना :- इस सम्प्रदाय के संस्थापक लाओत्से ने 'ताओ ते किंग' नामक ग्रंथ में अपने सिद्धांत प्रस्थापित किये हैं। यह दर्शन ताओ और तेह इन दो शब्दों पर आधारित है। 'ताओ' का अर्थ चरम तत्त्व का मार्ग, विश्व का मार्ग और स्वदर्शन है। इसी प्रकार 'तेह' का अर्थ जीवन प्रेम, प्रकाश, संकल्प, आत्मसिद्धि और सद्गुण है। इसके आचरण से आत्म साक्षात्कार किया जा सकता है। लाओत्से ने विनयशीलता, नम्रता, मार्दव और पंच ज्ञानेन्द्रिय पर संयम करने का निर्देश किया है।५४ इस धर्म की साधना पद्धति का मूलाधार प्रेम और नम्रता ही है।
कन्फ्युशियस धर्म की साधना :- चीन में ही लाओत्से के समान कन्फ्युशियस ने भी मानवीय जीवन की वृत्तियों को नियंत्रण के लिए अपने धर्म की स्थापना की। उन्होंने सद्गुणों को अपना आधार माना है। निंदा, दोष, बुराई का त्याग, विवेक, न्याय की स्थापना, सदाचारी जीवन और सद्गुणों का विकास करना साधना पद्धति का भाग बताया है। उन्होंने साधना के पांच सूत्र दिये हैं :- जेन, चुन-जु, ली, ते और वेन उसके अनुसार वैचारिक स्पष्टता, कर्तव्यशीलता, दया, विवेक, नैतिकता और अपने सिद्धान्तों के लिये दृढ़ विश्वास। संक्षेप में सद्गुणों को ही उन्होंने व्यक्ति और समाज के विकास के लिये आधारभूत साधन माना है।५५
पारसी धर्म की साधना :- पारसी साधना पद्धति सामाजिक जीवन को नियंत्रित करने का स्वरूप है। धार्मिक आचरण कर्मकाण्ड से बंधा हुआ नहीं है। अग्नि देव की ज्योत को आधार लेकर दया, दान, न्याय, नीति इत्यादि की प्रस्थापना और मनुष्य के दस कर्तव्य बताए हैं - निंदा, क्रोध, चिन्ता, ईर्ष्या, आलस्य इत्यादि का त्याग। संक्षेप में असत् का
जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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