________________
आनापानसति भावना :- आनापानसति अथवा स्मृति भावना पारंपारिक योग साधना पद्धति के प्राणायाम से मिलती जुलती है। स्मृतिपूर्वक श्वासप्रश्वास की प्रक्रिया पर ध्यान रखना स्मृति भावना कहलाती है। इस पद्धति का विस्तृत विश्लेषण संयुक्तनिकाय में उपलब्ध है।४८
ध्यान योग :- बौद्ध साधना पद्धति में ध्यान और साधना का परस्पर घनिष्ट संबंध है। इन दोनों को पृथक् नहीं किया जा सकता है। क्योंकि ध्यान का शाब्दिक अर्थ हैचिन्तन करना। परंतु यहाँ पर ध्यान से तात्पर्य है कि अकुशल कर्मों का दहन करना। बौद्ध साधना पद्धति में ध्यान के अन्तर्गत ही समाधि, विमुक्ति, अधिचित्त, योग, कम्मट्ठान, प्रधान, निमित्त, आरम्भण और लक्खण आदि शब्दों का प्रयोग किया है। वस्तुतः ध्यान समाधि प्रधान पारिभाषिक शब्द है। इसलिए ध्यान का क्षेत्र विस्तृत है। यदि साधना को ध्यान से अलग कर दें तो ध्यान का स्वरूप समझ ही नहीं पा सकेंगे। क्योंकि अकुशल धर्मों का मूल लोभ, दोष और मोह है। इन्हीं का दहन साधना और ध्यान से ही किया जाता है। परंतु यहां पर अकुशल धर्मों से पांच नीवरणों को लिया गया है।४९
बौद्ध साहित्य में ध्यान के दो प्रमुख भेद हैं- १) आरम्भन उपनिज्झान (आलंबन पर चिंतन करने वाला) और २) लक्खण उपनिज्झान (लक्षण पर ध्यान करने वाला)। आरम्भण उपज्झान आठ प्रकार का माना जाता है। उसके दो भाग हैं- रूपावचर और अरूपावचर। इन्हें समापत्ति के नाम से भी संबोधित किया जाता है। लक्खण उपज्झान के तीन भेद माने जाते हैं।५०
लोकोत्तर ध्यान :- बौद्ध आचार्यों ने मानवीय मन की चंचलता और बहु आयामी स्वरूप को भलीभाँति समझने का प्रयत्न किया। और भिक्षु सम्प्रदाय साधना पद्धति पर पूर्ण विश्वास करता था। साधना के प्रायोगिक अनुभवों का, कठिनाइयों का विस्तृत विश्लेषण ऊपर लिखी हुई पद्धतियों में दृष्टिगोचर होता है। हमने अति संक्षेप में इन अनुभवों का शास्त्रीय स्वरूप ग्रहण किया है। वास्तव में यह विषय शास्त्रीय विवेचन का नहीं है। परंतु अध्ययन की तांत्रिक भूमिका के स्वरूप में पठन-पाठन के महत्त्व को भी दुर्लक्षित नहीं किया जा सकता। अतः यह विश्लेषण दिया गया है। बौद्ध आचार्यों ने विस्तृत साधना पद्धति विकसित की, और चंचल चित्त को नियंत्रण में करने के लिए कोई भी उपाय नहीं छोड़ा। ध्यान साधना की अनेक पद्धतियों का हमने उल्लेख किया है। उसमें लोकोत्तर ध्यान पद्धति चरम सीमा का द्योतक है।
साधक रूपावचर और अरूपावचर ध्यान के माध्यम से परिशुद्ध समाधि को प्राप्त करता है। लोकोत्तर ध्यान में उसका प्रहरण किया जाता है। सत्काय दृष्टि, विचिकितंत्र,
जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org