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________________ कि हमने पीछे निर्देश किया है। बौद्ध धर्म का विकास और प्रभाव भारत और भारत के बाहर बड़े विस्तृत स्वरूप में फैला। परिणामस्वरूप भिन्न-भिन्न बौद्ध विचार शाखाओं में भी अनेक साधना पद्धतियों का विकास होना शुरू हुआ। कुछ विवेचन हमने किया है। इसके अतिरिक्त महायान साधना पद्धति में बोधिचित्त द्वारा पारमिताओं की प्राप्ति, दस भूमियाँ और त्रिकायवाद का उल्लेख मिलता है।४३ यह विस्तृत विश्लेषण बौद्ध साधकों की साधना के परिणामस्वरूप शास्त्रीय आकार में हमें उपलब्ध है। इसी प्रकार स्थविरवादी साधना पद्धतियाँ भी विकसित हुई। ये पद्धतियाँ आधुनिक युग में प्रयोग में लायी जाती हैं। इसमें शपथ भावना, विपश्यना भावना और आनापानसति। ये तीनों साधना-पद्धतियाँ चित्त की एकाग्रता के लिये अत्यन्त सहायक हैं। साधना मार्ग के विघ्नों का नाश करना, शुभ, अशुभ की विवेचना, अष्टांग मार्ग का आलम्बन, इत्यादि विपश्यना भावना की ओर ले जाते हैं। विपश्यना भावना :- बौद्ध साधना पद्धति में समाधि भावना (शपथ भावना) का और विपश्यना भावना (अन्तर्ज्ञान) का विशेष महत्त्व है। विपश्यना आध्यात्मिक विकास की वैज्ञानिक प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य अनुकूल, प्रतिकूल संवेदनाओं का निरीक्षण करना है, और परमविशुद्धि की ओर अग्रसर होना है। विपश्यना का शाब्दिक अर्थ-यथार्थ अथवा सम्यक् अथवा विशेष प्रकार से देखना है। यह देखना केवल चरमचक्षु तक मर्यादित नहीं है। इसमें मनोवैज्ञानिक तथ्य निहित है। इसके अनुसार शरीर, चित्त और कर्म ग्रंथियों का अनुभव लेना है।४५ साधक कर्म और उनके विपाक को जानकर शुद्ध चेतना को देखने का प्रयास करता है। विपश्यना की प्रक्रिया ध्यान साधना कही जाती है। दूसरे शब्दों में विपश्यना अन्तर्प्रवेश की क्रिया है। विशुद्धिमग्ग में इसका विस्तृत विश्लेषण मिलता है। इस प्रक्रिया के चार अंग निम्नलिखित है :- १) काय विपश्यना, २) वेदना विपश्यना, ३) चित्त विपश्यना और ४) धर्म विपश्यना। कायविपश्यना में शरीर के एकएक भाग को देखा जाता है, साथ ही शरीर से जुड़े हुए रोग, जरा, मृत्यु आदि का भी दर्शन किया जाता है। वेदना विपश्यना में शरीर के ऊपरी और आंतरिक संवेदनाओं का अनुभव किया जाता है। चित्त विपश्यना से मन के भीतरी पटल खुलते हैं अर्थात् शरीर और मन की भीतरी तल पर स्थित सूक्ष्म ग्रंथियां खुलती हैं तथा समभाव के कारण नवीन ग्रंथियों का निर्माण भी रुक जाता है। ग्रंथियों के खुलने से शरीर और मन में विद्यमान विकार दूर होते (हो) जाते हैं। तन, मन व आत्मा स्वस्थ होने लगते हैं। धर्मानुपश्यना से सभी ग्रंथियाँ विमूल हो जाती हैं और अतीन्द्रिय अवस्था की अनुभूति होने लगती है। अतः विपश्यना ध्यान पद्धति सब पद्धतियों में श्रेष्ठ मानी गई है।४६ १२ ध्यान परंपरा में साधना का स्वरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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