________________ इस ग्रन्थ की लेखिका डॉ. प्रियदर्शनाजी एक स्थानकवासी जैन साध्वी हैं, जिन्होंने गत 30-32 वर्षों के दीक्षा पर्याय में अध्ययनशीलता जागृत रखकर आध्यात्मिक ज्ञान के क्षेत्र में काफी दूर तक की यात्रा की है। सांसारिक अवस्था में माता-पिता की हालत साधारण होने के कारण क्रमिक शिक्षा बहुत ही कम हो पायी थी। परन्तु दीक्षा लेने के अनन्तर काल में प्रारम्भ से ही अपनी ज्ञानलालसा की पूर्ति के लिए वे निरन्तर प्रपलशील रहीं। प्रस्तुत ग्रन्थ उनकी अध्ययनशीलता की परमावधि है। 'जैन साधना पद्धति में ध्यान योग' उनके दीर्घकालीन शोध का परिपाक है। 'ध्यान योग' केवल जैन दृष्टि से लिखने में विषय अधूरा रह जाता, अतः अन्य दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन भी उन्होंने किया। ध्यान-योग के साथ ही साधना के क्षेत्र में मार्गक्रमण करने के लिए आवश्यक कर्म की विभिन्न प्रकृतियाँ, कर्मपरिपाक, कर्म से विमुक्ति पाने के उपाय, कर्मनिर्जरा के उपाय-स्वरूप ध्यान की आवश्यकता, ध्यान के विविध प्रकार, योग साधना, योग एवं ध्यान का समन्वय, अन्य धर्मों एवं विचारकों के ध्यान-योग संबंधी विचार, विभिन्न प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन एवं अन्त में जैन धर्म में वर्णित ध्यान-योग की विशेषता आदि विषयों का अन्तर्भाव इस शोध प्रबन्ध में विस्तार से किया गया है। अध्याय के अन्त में दी गयी सन्दर्भ सूचि, साध्वीजी के दीर्घकालीन प्रयत्न, ज्ञान संग्रह एवं शोध बुद्धि का परिचय इस ग्रन्थ की उपयुक्तता एवं महत्त्व प्रस्थापित करते हैं। Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org