________________ श्रमणसूत्र : उपाध्याय अमरमुनि, सन्मति ज्ञानपीठ, एज्युकेशन प्रेस, आगरा, द्वितीय, 1966 श्रावक धर्म : डॉ. नरेंद्र भानावत, सम्यक्ज्ञान प्रचारक मंडल जयपुर, 1970 श्रावकाचार संग्रह : आचार्य शांतिसागर, जिनवाणी जीर्णोद्धारक संस्था, फलटण, प्रथम, 1976 श्रावकाचार : श्रीवसुनंद्याचार्य, गांधी देवचंद चतुरचंद, कोल्हापुर, (जैनेंद्र छापखाना), 1907 श्रावकाचार संग्रह -1 : प. पू. चारित्र चक्रवर्ती आ. 108 शांतिसागर दिगंबर जैन जिनवाणी जीर्णोद्धारक संस्था, फलटण (महा.) प्रथम, 1976 श्रावकाचार संग्रह (भाग-२) : हिरालाल सिद्धांतालंकार न्यायतीर्थ, लालचंद हिराचंद, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर (महा.), प्रथम, 1956 श्रावकाचार संग्रह (भाग-३) : सं. अनु. पं. हिरालाल शास्त्री, सेठ लालचंद हिराचंद, अध्यक्ष जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, प्रथम, 1977 श्रावकाचार संग्रह - 1, 2, 3,5: लालचंद हिराचंद, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर (महा.), प्रथम, 1974 श्री प्रतिक्रमण सूत्र (भाग-१) : भद्रंकरविजयजी धुरंधरविजयजी (सं.), जैन साहित्य विकास मंडल, मुंबई (विलेपारले), वि. सं. 2007 श्री पासनाह चरियं : भद्रसूरि, लींच वास्तव्य नालचंद्र ठाकरसी, अहमदाबाद, 1945 तीर्थकर मासिक : सं. डॉ. नेमीचंद जैन, हीरा भैया प्रकाशन, 65 पत्रकार कॉलोनी, कनाडिया मार्ग, इंदौर (म. प्र.), अप्रैल 1983, वर्ष 12, अंक 12 जिनवाणी ध्यान विशेषांक : सं. डॉ. नरेंद्र भानावत, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल, जयपुर, जिनवाणी : (ध्यान परिशिष्टांक) सम्पादक-डॉ. नरेंद्र भानावत, सम्यग्ज्ञान प्रचारक मंडल, जयपुर, नवम्बर 1972, वर्ष 29, अंक 11. 590 जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org