________________
उपयोगिता में अभिवृद्धि हुई है। साध्वीजी का यह प्रयास सराहनीय है। हम आशा करते हैं कि भविष्य में भी वे इस दिशा में अपना अवदान प्रस्तुत करेंगी। अंत में मैं साध्वीश्री के प्रति अपना आभार प्रकट करता हूँ कि इस भूमिका लिखने के बहाने मुझे जैन ध्यान पद्धति संबंधी साहित्य के आलोडन का एक अवसर दिया। साथ ही भूमिका लिखने में हुए विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी भी हूँ।
दीपावली वीर परिनिर्वाण ५-११-९१
सागरमल जैन
निदेशक पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, आई. टी. आई. रोड, वाराणसी-५
साठ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org