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________________ नाम कर्म - जिस कर्म के उदय से जीव नारक, तिर्यंच, मनुष्य, देव आदि कहलाए, उसे नाम कर्म कहते हैं। नाम-निक्षेप - नाम के अनुसार वस्तु में गुण न होने पर भी व्यवहार के लिए जो पुरुष के प्रयत्न से नामकरण किया जाता है, वह नाम-निक्षेप है। नारक - जिसको नरक गति नामकर्म का उदय हो अथवा जो जीवों को क्लेश पहुंचाएं वह नारक है। दूसरे शब्दों में द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव से जो स्वयं तथा परस्पर में प्रीति को न प्राप्त करते हों। नाराच संहनन - जिस हड्डियों की रचना में दोनों तरफ मर्कट बंध हो, लेकिन वेष्टन और कील न हो, उसे नाराच संहनन कहते हैं। नाली - साड़े अड़तीस लव के समय को नाली कहते हैं। निकाचन - उद्वर्तना, अपवर्तना, संक्रमण और उदीरणा इन चार अवस्थाओं के न होने की स्थिति का नाम निकाचन है। निकाचित कर्म - जिन कर्मों का फल बंध के अनुसार निश्चित रूप से भोगा जाता निकाचित प्रकृति - जिस प्रकृति में कोई भी करण नहीं लगता उसे निकाचित प्रकृति कहते हैं। निद्रा - जिस शयन में सुखपूर्वक जागरण होता है, उसे निद्रा कहते हैं। निदान - भोगाभिलाषा में फंसकर तपस्या को बेच देने की क्रिया निदान है। किसी देवता अथवा राजा आदि मनुष्य की ऋद्धि व सुखों को देखकर या सुनकर उसकी प्राप्ति के लिए अभिलाषा करना कि, मेरे ब्रह्मचर्य व तप आदि के फलस्वरूप मुझे भी ऐसी ऋद्धि व वैभव प्राप्त हो; और अपने तप अनुष्ठान को उसके लिए बद्ध कर देना निदान है। निदान शब्द का अर्थ - निश्चित अथवा बांध देना। उच्च तप को निम्न फल की अभिलाषा के साथ बांध लेना। महान ध्येय को तुच्छ संकल्प-विकल्प रूप भोग प्रार्थना के लिए जोड़ देना। निधत्ति - कर्म की उदीरणा और संक्रमण के सर्वथा अभाव की स्थिति। निर्जरा - आत्मा के साथ क्षीर, नीर की तरह आपस में मिले हुए कर्म पुद्गलों के एक देश क्षय होने को निर्जरा कहते हैं। आत्म-प्रदेशों से कर्मों का एक देश पृथक् होना द्रव्य-निर्जरा और द्रव्य निर्जरा के जनक अथवा द्रव्यनिर्जरा जन्य आत्मा के शुद्ध परिणाम को भावनिर्जरा कहते हैं।। निहारिम - जो साधु उपाश्रय में पादोपगमन अनशन करते हैं; मृत्यूपरांत उनके शव को अग्नि संस्कार के लिए उपाश्रय से बाहर लाया जाता है; अतः वह देह त्याग निर्हारिम कहलाता है। निर्हार का अर्थ है - बाहर निकालना। जैन साधना पद्धति में ध्यान योग ५३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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