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असुर - जिनका स्वभाव अहिंसा आदि के अनुष्ठान में अनुराग रखनेवाले सुरों से विपरीत होता है; वे असुर हैं।
अहिंसा अणुव्रत - मन, वचन और काय से तथा कृत, कारित और अनुमोदना से त्रस जीवों की संकल्पिक हिंसा का परित्याग करना।
अहोरात्र - तीस मुहूर्त प्रमाण काल। अज्ञान - मिथ्यात्व के उदय के साथ विद्यमान ज्ञान ही अज्ञान है।
अज्ञान मिथ्यात्व - जीवादि पदार्थों को "यही है" "इसी प्रकार है" इस तरह विशेष रूप सेन समझना।
अज्ञान व्यवहार - देशांतर-स्थिर गुरु को अपने दोषों की आलोचना कर लेने के लिए किसी अगीतार्थ के द्वारा आगम भाषा में पत्र लिखकर भेजने एवं गुरु के द्वारा उसे भी उसी प्रकार गूढ़ पदों में ही निश्चित अर्थ के भेजने को अज्ञान व्यवहार कहा जाता है।
अक्षर - ज्ञान का नाम अक्षर है और ज्ञान जीव का स्वभाव होने के कारण श्रुतज्ञान स्वयं अक्षर कहलाता है।
अक्षीण महानरा - तपस्या-विशेष से प्राप्त होने वाली एक दिव्य शक्ति। लाभांतराय कर्म के उत्कृष्ट क्षयोपशमन युक्त जिस ऋद्धि के प्रभाव से ऋद्धिधारी प्राप्त अन्न को जब तक स्वयं न खा ले, तब तक उस अन्न से शतशः व सहस्त्रशः व्यक्तियों को भी तृप्त किया जा सकता है। ____ अकाम निर्जरा - अनिच्छापूर्वक दुःख के सहने से जो कर्म निर्जरा होती है, वह अकाम निर्जरा है।
__ आकाश - जो धर्म, अधर्म, काल, पुद्गल और सभी जीवों को स्थान देता है, वह आकाश है। ____ आगम - पूर्वपरविरोधादि दोषों से रहित, शुद्ध, आप्त के वचन को आगम कहते
आउज्जीकरण - केवली-समुद्घात के पहले किए जाने वाला शुभ-व्यापार-योग अथवा मन वचन काय की शुभ क्रिया, एक अन्तर्मुहूर्त तक कर्म पुद्गल को उदयावलिका में डालने रूप उदीरणा विशेष।
आगाल - द्वितीय स्थिति के दलिकों को अपकर्षण द्वारा प्रथम स्थिति के दलिकों में पहुंचाना।
आचार - जिस में श्रमणों के आचार, भिक्षा-विधि, विनयफल, शिक्षा, भाषा, अभाषा, चरण, संयमयात्रा आदि का कथन किया गया है, उसका नाम आचार है।
___ आर्जव धर्म - माया का परित्याग कर निर्मल अंतःकरण से प्रवृत्ति करना आर्जव धर्म है। ५२०
जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व
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