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________________ (घ) आमोसहि........ बलदेवा वासुदेवा या - - - - - - - کن که आसी दाढा तग्गयमहाविसासीविसा दुविह भेया। ते कम्म जाइभेएणणेगहा -चउविहविगप्पा।। विशेषावश्यक भाष्य गा.७७९-७९१ विशेषावश्यक भाष्य वृत्ति (हेमचन्द्र) पृ. ३२२-३२५ प्रवचनसारोद्धार द्वार २७० गा. १४९२-१४९५ की वृत्ति सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्र भाष्यकार पृ. ४५९-४६३ आवश्यक वृत्ति, पृ. ६९८, उद्धृत, जैन धर्म में तप (मिश्री. म.) पृ. ८१ पमायं कम्ममाहंसु। सूत्रकृतांग १/८/३ ६३. नत्थि तस्स आराहणा। भगवती सूत्र २०१९ ६४. (क) योगः कल्पतरुः श्रेष्ठो योगश्चिन्तामणिः परः। योगप्रधानं कर्माणां योगसिद्धेः स्वयं ग्रहः।। ___ योगबिन्दु (हरिभद्रसूरि) गा. ३७ (ख) कफ विपुण्मलामर्श - सर्वोषधिः महर्द्धयः। सम्भिन्नस्रोतालब्धिश्च, यौगं ताण्डवडम्बरम्।। चारणाशीविषावधि- मनःपर्यायसम्पदः। योगकल्पद्रुमस्यैताः विकसितकुसुमश्रियः। योगशास्त्र १/८-९ (ग) योगाणुभावओ चिय पायं न य सोहणस्स वि य लाभो। लद्धीण वि संपत्ती इमस्स जं वन्निया समए।। रयणाई लद्धीओ अणिमाइयाओ तह चित्ताओ। आमोसहाइयाओ तहा तहा जोगवुड्डीए ।। एईय एस जुत्तो सम्म असुहस्स रववगओ नेओ। इयरस्स बंधगो तह सुहणमिय मोक्खगामि ति।। योग शतक (हरिभद्र) गा.८३-८५ ४९० जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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