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रा
प्रवर
विप्पोसहि, आमोसहि, सव्वोसहि, अप्पेगइया कोट्ठबुद्धी एवं बीय बुद्धी पडबुद्धी, अप्पेगइया पयाणुसारी अप्पेगइया संभिन्नसोया अप्पेगइया खीरासवा अप्पेगइया महुआसवा अप्पेगइया सप्पिआसवा अप्पेगइया अक्खीणमहाणसिया एवं उन्नुमइ, अप्पेगइया विउलमइ विउव्वणिडिपत्ता चारणा विज्जाहरा आगासाइवाइणो।
ओववाइसुत्तं (सुत्तागमे) पृ.७ (ग) आमोसहि विप्पोसहि खेलोसहि जल्लओसही चेव।
सव्वोसहि संभित्रे ओहीरिउ विउलमइ लद्धी।। चारण आसीविस केवलीय गणहारिणो य पुव्वधरा। अरहंत चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा या। खीरमहुसप्पि आसव कोठ्ठय बुद्धी पयाणुसारी या तह बीयबुद्धि तेयग आहारक सीय लेसा या। वेउव्विदेहलद्धी अक्खीणमहाणसी पुलाया या परिणाम तव वसेण एमाई हुंति लद्धीओ।।
द्वार २७०,गा. २४९२-२४९५ (घ) आवश्यक नियुक्ति गा.६९-७७
(ङ) विशेषावश्यक भाष्य गा.७७९-८०८ ५८.
ध्यान कल्प तरू, अमोलक ऋषिजी म. पृ. १४५ ५९. (क) आवश्यक नियुक्ति (भद्रबाहु स्वामी) ज्ञानसागर चूा समेत सभाष्य
नियुक्ति पृ. ९३ (ख) षट् खण्डागम (खंड ४) पृ. २७-३८ (गा. ६-१५) (ग) सभाष्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् भाष्यकार पृ. ४५९ (घ) विशेषावश्यक भाष्य गा.७७९, भाष्यवृत्ति पृ. ३२३
७९९-८००, भाष्य पृ. ३२७ ६०. (क) भगवती सूत्र २०/९
लूतातन्तुनिवतित पुटकतन्तून् रविकरान् वा निश्रां कृत्वा जंघाभ्यामाकाशेन चरतीति जंघाचारणः।
भगवती सूत्र वृत्ति (अभयदेवसूरि) २०/९
उद्धृत जैन धर्म में तप (मुनि मिश्रीमलजी म.) पृ. ७६ (ख) चत्तारि जाइ आसीविसा - बिच्छुयजाई.....। स्थानांग ४/४ (ग) आवश्यक नियुक्ति गा. ६९-७०
आवश्यक चूर्णि पृ. ८९-९१
ध्यान का मूल्यांकन
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