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लेशयति-श्लेषयतीवात्मनि जननयनानीति लेश्या अतीव चक्षुराक्षेपिका स्निग्ध दीप्त रूपा छाया। उत्तराध्ययन बृहत्वृत्ति पत्र ६५० उद्धृत श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ (पं. खण्ड ) ४७१
एसो पंच नमस्कार (मुनि नथमल) पृ. ७६-७७
श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ ( खण्ड ५) पृ. ४६५-४६६
तपसा निर्जरा च ।
आत्मनो ज्ञानादि गुणानां तत्कर्म क्षयादितो लाभः।
भगवतीसूत्र वृत्ति ८/२,
उद्धृत जैन धर्म में तप (मिश्रीमलजी म. ) पृ. ६८
परिणाम तववसेण इमाई हुंति लद्धीओ।
तत्त्वार्थ सूत्र ९/३
प्रवचनसारोद्धार, द्वार २७०, गा. १४९५
कइविहाणं भंते । लद्धी पण्णत्ता ? गोयमा । दसविहा लद्धी पण्णत्ता, तंजहा१ णाण लद्धी, २. दंसण लद्धी, ३. चरित्त लद्धी, ४. चरित्ता-चरित्त लद्धी, ५. दाण लद्धी, ६. लाभ लद्धी, ७. भोग लद्धी, ८. उवभोग लद्धी, ९. वीरियलद्धी, १०. इंदिय लद्धी ।
णाणलद्धी..... पंच विहा पण्णत्ता, तंजहा- अभिणिबोहियणाणलद्धी, जाव केवलणाण ली। अण्णाणलद्धी - तिविहा पण्णत्ता, तंजहा मइ - अण्णाण लद्धी सुयअण्णाणलद्धी विभंगणाणलद्धी ।
दंसण लद्धी तिविहा पण्णत्ता, तंजहा सम्मदंसणलद्धी, मिच्छा- दंसणलद्धी, सम्ममिच्छादंसणलद्धी ।
चरित लद्धी पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा- सामाइयचरित्त लद्धी जाव अहक्खायचरित्तलद्धी ।
चरित्ताचरित्तलद्धी एगागारा पण्णत्ता एवं जाव उवभोग लद्धी एगागारा
पण्णत्ता ।
वीरिय लद्धी तिविहा पण्णत्ता, तंजा - बालवीरियलद्धी, पंडियवीरियलद्धी बालपंडियवीरिय लद्धी ।
इंदिय लद्धी पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा- सोइंदिय लद्धी जाव फासिंदिय लद्धी । भगवइ (सुत्तागमे ) ८/२
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो अप्पेगइया आभिणिभोहियणाणी जाव केवलणाणी अप्पेगइया मणबलिया वयबलिया कायबलिया अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गह- समत्था ३ अप्पेगइया खेलोसहिपत्ता एवं जल्लोसहि,
जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व
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