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(ख) संघयणमट्ठिनिचओ तं छद्धा वनरिसहनारायं।
तहय रिसहनारायं नारायं अद्धनाराय।। कीलिअछेवढं इह रिसहो पट्टो य कीलिया वन। उभओ मक्कडबंधो नारायं इममुरालंगे।। कर्मग्रन्थ १/३८-३९ छव्विहे संठाणे पण्णत्तं, तं जहा - समचउरंसे, णग्गोहपरिमंडले, साई, खुन्ने, वामणे, हुंडे।
ठाणे (सुत्तागमे) ६/५७३ (ख) कर्मग्रन्थ १/४० १०. (क) __पंच निसिजाओ पण्णत्तं, तंजहा- उक्कुडुया गोदोहिया
समपायपुया पलियंका अद्धपलियंका। ठाणे (सुत्तागमे) ५/१/४९८ (ख) आयारे (सुत्तागमे) २/१५/१०२० ११. (क) सर्वेषामेवं त्रीणि शरीराणि वर्तन्ते।
१०८ उपनिषद् (साधना खण्ड) पृ. ७८ (ख) विवेक चूडामणि (आ. शंकर) गा. ७४, ८९, ९८, १२२
सरल मनोविज्ञान (लालजीराम शुक्ल) पृ. ३३-४० १०८ उपनिषद् (साधना खण्ड) श्री राम शर्मा, पृ. ६७-६८ सरल मनोविज्ञान पृ. १४० सरल मनोविज्ञान पृ. १४४ उद्धृत, प्राचीन जैन साधना पद्धति, (साध्वी राजेमति) पृ. ४०
सरल मनोविज्ञान पृ. ४४ १८. (क) कर्मारग्राममनुप्राप्तः तत्र प्रतिमया स्थितः।
आवश्यक नियुक्ति (भा. १) गा. ४६१ (ख) महावीरचरियं (श्रीगुणचंद्रगणि) पृ. १४४ (ग) छम्माणि गोव कडसल पवेसणं मज्झिमाए पावाए। खर ओ विज सिद्धत्थ वाणियओ नीहरावेइ।।
आवश्यक नियुक्ति गा. ५२५ (घ) त्रिषष्टिशलाकापुरुष, १०/३/१७-२६, १०/४/६१६-६४६
तंसि भगवं अपडिन्ने अहे बिगडे अहियासए। दविए निक्खम्म एगया राओ ठाइए भगवं समियाए।।
आचारांगसूत्र १/९/२/५ चत्तारि साहिए मासे बहवे पाणजाइया अभिगम्मा अभिरुज्झ कायं विहिरिंसु आरूसियाणं तत्थ हिंसिसु।।
आचारांग सूत्र, १/९/१/३
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ध्यान का मूल्यांकन
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