SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 543
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २०. (क) तत्थ सामी बाहिं पडिमं ठितो। आवश्यक नियुक्ति (मलयगिरि) २७९ (ख) बहिः प्रतिमया स्थितः। आवश्यक नियुक्ति (हरिभद्र) ४७९ (ग) ततः स्वामी बहिर्हरिद्रसन्निवेशात् हरिद्रवृक्षस्याधोऽवतस्थे प्रतिमया, पथिकप्रज्वालिताग्निना प्रभोरनपसरणात् पादौ दग्धौ, गोशालो नष्टस्तत्र।। आवश्यक नियुक्ति (हरिभद्र टीका) गा. ४७९ की चूर्णि आचारांग सूत्र १/९/२/२-३, १/९/१/६ २२. णो सुकरमेयमेगेसिं नाभित्रासे य अभिवायमाणे। हयपुव्वे तत्थ दण्डेहिं लूसियपुव्वे अपुण्णेहिं।। फरुसाइं दुतितिक्खाई, अइअच्चमुणी परक्कममाणे। अघायनट्टगीयाई, दंडजुद्धाई मुट्ठिजुद्धाई।। __ आचारांग सूत्र १/९/१/८-९ २३. लाहिं तस्सुवस्सग्गा बहवे जाणवया लूसिंसु। अह लूहदेसिए भत्ते कुक्कुरा तत्थ हिहिंसु निवइसु।। अप्पे जणे णिवारेइ, लूसणए सुणए उसमाणे। छु छु कारंति आई सु समणं कुक्कुरा डसंतु ति।। आचारांगसूत्र, १/९/३/-५ २४. (क) शूलपाणीनामा यक्षोऽभूत्.........। रोद्दा य सत्त वेयण, ............। रौद्राश्च सप्त वेदना यक्षेण कृताः आवश्यक नियुक्ति गा. ४६४ एवं उसकी चूर्णि (ख) महावीर चरियं पृ. १५३ २५. (क) महावीर चरियं (नेमिचंद) पृ. ९८४ (ख) महावीर चरियं (गुणचंद्र) पृ. १५९ (ग) त्रिशष्टिशलाकापुरुष १०/३/२३६ आवश्यक नियुक्ति गा. ४६७ २६. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र १०/३/२७१-२७९ रागद्वेषाग्निनोत्तप्ताः समुतिष्ठन्ति जन्तवः। तपः संयमयोगेन क्षालिताखिलकल्मषाः।। उपमिति भवप्रपंचा (सिद्धर्षिगणि) उत्तरार्द्ध, ५/१३६, ७/७७ २८. आवश्यक नियुक्ति गा. ४८९ एवं उसकी चूर्णि २९. (क) ढढभूमीए बहिआ पेढालं नाम होइ उन्नाणं। ४८२ . जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy