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लब्धि फोड़ना - एक प्रकार की उत्सुकता, कुतुहल और प्रदर्शन, यश एवं प्रतिष्ठा की भावना का परिणाम है। इसलिये लब्धि का प्रयोग साधक के लिये विहित नहीं है। शुद्ध रत्नत्रय की साधना करना ही साधक का लक्ष्य है। महावीर की साधना पद्धतियों में चमत्कार को नहीं, सदाचार एवं आत्मशुद्धि को महत्व है।
ध्यानी को कफ, श्लेष्म, विष्ठा, स्पर्श आदि सभी औषधिमय महासम्पदाएं तथा संभिन्नस्रोतलब्धि आदि का प्राप्त होना योगजनित अभ्यास का ही चमत्कार है। चारण विद्या, आशीविषलब्धि, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान आदि उपरोक्त बताई हुई ज्ञानचारित्र-तपोजन्य सभी लब्धिसम्पदाएं योगकल्पवृक्ष, ध्यानचिन्तामणिरत्न की ही विकसित पुष्पप्रभायें हैं।६४ रत्नत्रय से गर्भित ध्यानयोग के द्वारा प्राप्त की गई ये लब्धियाँ मोक्षप्रदाता बनती हैं।
संदर्भ सूचि
१. (क) अंबर-लोह-महीणं कमसो जह मल-कलंक-पंकाणं।
सोज्झा-वणयण- सोसे साहेति जलाणलाइच्चा।। तह सोज्झाइ समत्था जीवंबर-लोह मेहणिगयाणं। झाण जलाऽणल-सूरा-कम्ममल-कलंक-पंकाणं।।
ध्यान शतक (जिनभद्रागणिक्षमाश्रमण) गा. ९७-९८ (ख) अनादिविभ्रमोद्भूतं रागादितिमिरं घनम्। स्फुटयत्याशु जीवस्य ध्यानार्कः प्रविजृम्मितः।
ज्ञानार्णव २५/५ २. (क) धणनमेवापवर्गस्य मुख्यमेकं निबन्धनम्। तदेव दुरितवातगुरुकक्षहुताशनम्।। ।
ज्ञानार्णव २५/७ (ख) वीरं सुक्कज्झाणाग्गिदड्ढकम्मिधणं पणमिऊण। ध्यान शतक गा. १
३. (क) पंच सरीरगा पण्णत्तं, तं जहा-ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए।
ठाणे (सुत्तागमे) ५/१/४९२ (ख) कइ णं भंते। सरीरा पण्णत्ता? गोयमा। पंच सरीरा पण्णत्ता। तंजहाओरालिए जाव कम्मए।
पण्णवणा सुत्तं (सुत्ताग़मे) १२/४०५
ध्यान का मूल्यांकन
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