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जलाकर भस्म कर देते हैं । उत्कृष्ट शक्ति प्रयोग में १६११ महाजनपदों को एक साथ भस्म कर डालने की शक्ति भी इस लब्धिधारक में होती है । बांयें पैर के अंगूठे को घिसकर यह तेज निकाला जाता है।
शीतललेश्या लब्धि :- यह तेजोलेश्या की प्रतिरोधी शक्ति है । यह भी एक आध्यात्मिक तेज है।
अक्षीणमहानस लब्धि :- इस लब्धि के प्रभाव से तपस्वी भिक्षा में लाये हुए थोडे से आहार से लाखों व्यक्तियों को भरपेट भोजन करा सकता है। शर्त यह है कि जब तक लब्धिधारी स्वयं भोजन न करें तब तक ही वह अखूट रहता है। लब्धिधारी उसमें से एक ग्रास भी खा ले तो वह अन्न समाप्त हो जाता है।
इस प्रकार इन लब्धियों का स्वरूप संक्षेप में बताया गया है, जो चारित्र और तप की विशिष्ट साधना द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं।६० दृष्टिवाद अंग में इन लब्धियों की प्राप्ति की तपस्या विधि का बहुत विस्तार से वर्णन है ऐसा कथन है, किन्तु आज वह उपलब्ध नहीं है। भगवती सूत्र, षट् खंडागम, आवश्यक नियुक्ति, विशेषावश्यक भाष्य, प्रवचन- सारोद्धार एवं तिलोयपण्णत्ती (यतिवृषभाचार्य) आदि ग्रन्थों में लब्धियों का स्वरूप मिलता है।
इन लब्धियों में तप की जो विधि बताई गई है वह लब्धि प्राप्त करने के लिये नहीं है, किन्तु वह तप का एक मार्ग है, जिस पर चलने से बीच में अमुक सिद्धियां मिल जाती
हैं।
गरिष्ठ भोजन करने का महत्व नहीं है, महत्व है उसे पचाने का। वैसे ही शक्ति को प्राप्त करना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, किन्तु शक्ति को प्राप्त करके उसे पचा लेना बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिये शास्त्रों में जहां लब्धियों का वर्णन किया गया है, वहां लब्धियों के प्रदर्शन व प्रयोग का निषेध भी किया गया है। स्थूलि भद्र को लब्धियां मिलीं, किन्तु उन्हें वे पचा नहीं सके।६१ लब्धि का प्रकटीकरण प्रमाद है। जितने भी लब्धि प्रयोग किये जाते हैं- सब प्रमत्त दशा में ही होते हैं। छठे गुणस्थान तक ही लब्धि प्रयोग है। सप्तम गुणस्थानवर्ती कभी भी लब्धि का प्रयोग नहीं करता, क्योंकि वहां अप्रमत्त भाव है, और लब्धि-विस्फोट प्रमत्त भाव है, प्रमाद-सेवना है। प्रमाद कर्म बन्धन का कारण है।६२ इसीलिये भगवती सूत्र में बताया गया है - जो साधक (गृहस्थ या मुनि) लब्धि का प्रयोग कर, प्रमाद सेवन करके यदि पुनः उसकी आलोचना नहीं करता है, और अनालोचना की दशा में ही काल प्राप्त कर जाता है तो वह धर्म की आराधना से च्युत हो जाता है - विराधक हो जाता है।६३
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जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व ।
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