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प्रभाव से तपस्वी साधक के मल-मूत्र में सुगंध आती हो, जिसका स्पर्श होने पर रोगी का रोग शांत हो जाता हो - जिनका मल-मूत्र औषधि की भांति रोगोपशमन में समर्थ हो, ऐसी योग शक्ति का नाम- विप्पोसहि लब्धि है।
सव्वोसहि :- सर्वौषधि। प्रथम चार लब्धियों से शरीर के अलग-अलग अवयव एवं वस्तुओं के स्पर्श से रोग शांत हो जाता है। किन्तु सर्वौषधि लब्धि के धारक तपस्वी के तो शरीर के समस्त अवयव, मल-मूत्र, केश, नख, थूक आदि में सुगंध आती है तथा उनके स्पर्श से रोग शांत हो जाते हैं।
___ मनोबलि लब्धि :- बारह अंगों में निर्दिष्ट त्रिकालविषयक अनन्त अर्थ-व्यंजन पर्यायों से व्याप्त षड् द्रव्य एवं नौ तत्त्वों के निरन्तर चिंतन में खेद न होना मनोबलि लब्धि है। यह लब्धि विशिष्ट तप के प्रभाव से प्राप्त होती है।
वचिबलि लब्धि :- यह भी विशिष्ट तप के प्रभाव से प्राप्त होती है। बारह अंगों का बार-बार चिंतन करने में खेद न होना ही वचनलब्धि है। वचनलब्धि धारक की वाणी अमृत सी मीठी होती है।
कायबली लब्धि :- यह शक्ति विशेष चारित्र से उत्पन्न होती है। तीनों लोक को अंगुली से उठाकर अन्यत्र रखने में जो समर्थ होता है, वह कायबली है।
क्षीर मधु-सर्पिरास्रव लब्धि :- क्षीर का अर्थ 'दूध' है। इस लब्धि के प्रभाव से वक्ता के वचन सुनने वालों को बड़े ही मधुर (दूध-मधु एवं घृत के समान) प्रिय एवं सुखकारी होते हैं। भिक्षा पात्र में लूखा-सूखा-नीरस आहार आ जाने पर भी इस लब्धि के प्रभाव से वह स्वतः ही क्षीर, मधु एवं घृत के समान स्वादिष्ट बन जाता है। ____ कहीं-कहीं लोग मांत्रिक प्रयोग से वस्तु का स्वाद बदल देते हैं, किन्तु लब्धिधारी का तो यह सहज प्रभाव होता है, और वह शुद्ध आध्यात्मिक ही होता है, उसमें मंत्र-तंत्र का कोई पुट नहीं होता है। ___मधु शब्द से गुड़,शक्कर, खांड आदि लिया गया है | सर्पिष् शब्द का अर्थ घृत है। यह लब्धि तप के प्रभाव से प्राप्त होती है।
. अमडास्रवलब्धि :- भिक्षापात्र में आया हुआ रूखा-सूखा आहार इस लब्धि के प्रभाव से अमृत स्वरूप परिणत हो जाता है।
तेजोलेश्यालब्धि :- यह आत्मा की एक प्रकार की तेजस शक्ति है । यह लब्धि छह महीने तक निरंतर बेले-बेले तप करके सूर्यमण्डल के सामने आतापना लेना और पारणे में मुट्ठीभर उड़द के बाकुले और चुल्लूभर पानी लेने पर प्राप्त होती है । इस लब्धि के प्रभाव से योगियों को ऐसी शक्ति प्राप्त होती है कि कोध के आने पर विरोधी को ध्यान का मूल्यांकन
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