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जंघाचारण से विद्याचारण की शक्ति कम होती है। जंघाचारणवाला तीन बार आंख की पलक झपकने जितने समय में एक लाख योजन वाले जम्बूद्वीप को २१ बार चक्कर लगा सकता है, किन्तु विद्याचारण लब्धि वाले इतने समय में सिर्फ ३ बार ही चक्कर लगा सकते हैं। गति की तीव्रता जंघाचारण में अधिक है।
आशीविष लब्धि :- जिनकी दाढों में तीव्र विष होता है, उन्हें आशीविष कहा जाता है। आशीविष के दो भेद हैं- कर्म आशीविष और जाति आशीविष। कर्म आशीविष - तप अनुष्ठान, संयम आदि क्रियाओं द्वारा प्राप्त होता है इसलिये इसे लब्धि माना गया है। इस लब्धि वाला, शाप आदि देकर दूसरों को मार सकता है। यह लब्धि मनुष्य और तिर्यंच दोनों में हो सकती है। जातिआशीविष कोई लब्धि नहीं है। वह जन्मजात (जातिगत स्वभाव के कारण) प्राप्त हो जाती है। बिच्छु आदि में जो विष होता है वह जातिगत होता है। जाति आशीविष के चार भेद हैं- बिच्छू, मेंढक, सांप और मनुष्य। बिच्छू से मेंढक का विष अधिक प्रबल होता है, मेंढक से सांप का और सांप से मनुष्य का।
दृष्टिविष :- दृष्टि शब्द से चक्षु और मन को ग्रहण किया गया है। दोनों में दृष्टि की प्रबलता है। शुभ अशुभ लब्धि से रहित, हर्ष, क्रोधादि से रहित छह प्रकार के दृष्टि विष हैं।
उग्रतप लब्धि :- उम्र तप लब्धि के धारक दो प्रकार के होते हैं- १) उग्रोग्र तप लब्धि धारक और २) अवस्थित उग्रतप लब्धि धारका एक उपवास करके पारणा करें, दो उपवास करके पारणा करें, तीन उपवास करके पारणा करें। क्रमशः जीवन पर्यंत एकेक बढ़ाते हुए तप करें, पारणा करें उसे उग्रोग्रतप लब्धि के धारक कहते हैं। एक उपवास करके पारणा करें फिर एकान्तर से किसी निमित्त वश षष्ठोपवास हो गया। षष्ठोपवास से विहार करने वाले के अष्टमोपवास हो गये। इस प्रकार दशम द्वादशम आदि के क्रम से नीचे न गिरते हुए जो जीवनपर्यंत विहार करता रहता है, वह अवस्थित उग्रतप लब्धि का धारक कहा जाता है। यह तप का अनुष्ठान वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से होता है। इन दोनों तपों का उत्कृष्ट फल मोक्ष है।
दिततप लब्धि :- चतुर्थ और छठ्ठम आदि उपवासों के करने से शरीर को तेज जनित लब्धि प्राप्त होती है। शरीर दीप्ति की लब्धि तपाराधना से प्राप्त होती है।
तत्ततप लब्धि :- इस लब्धि के प्रभाव से मलमूत्र शुक्रादि तप्त-दग्ध कर दिये जाते
महातप लब्धि :- अणिमादि गुण, जल जंघादि के आठ चारण गुण, शरीरप्रभा से युक्त, दोनों प्रकार के अक्षीण ऋद्धि से युक्त, सर्वौषधि स्वरूप, आशीविष, दृष्टिविष
ध्यान का मूल्यांकन
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