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होती हैं।५६ इसी कारण लब्धियां शुद्ध आत्म शक्ति हैं। इसमें देव शक्ति या मंत्र शक्ति का सहारा नहीं लिया जाता। बौद्ध और वैदिक दर्शन में इसे क्रमशः 'अभिज्ञा' और 'विभूति' कहते हैं।
लब्धियों के भेद :- जितनी आत्मा की शक्तियाँ हैं उतनी ही लब्धियां हो सकती हैं। किन्तु आगमों में एवं अन्य ग्रन्थों में दस, अठ्ठाइस या अन्य भी कुछ लब्धियों का दिग्दर्शन किया गया है, जैसे कि५७ नाणलब्धि, दंसण लब्धि, चरित्त लब्धि, चरित्ताचरित्त लब्धि; दान लब्धि, भोग लब्धि, लाभलब्धि, उपयोग लब्धि, वीरिय लब्धि, इंदिय लब्धि, आमोसहि, विप्पोसहि, खेलोसहि, जल्लोसहि, सव्वोसहि, संभिन्ने, अवधि, ऋजु मई, विपुल मई लब्धि, चारण लब्धि, आसीविष लब्धि, केवली लब्धि, गणधर लब्धि, अर्हल्लब्धि, चक्रवर्ती लब्धि, बलदेव लब्धि, पूर्वधर लब्धि, वासुदेव लब्धि, क्षीरमधुसर्पिरास्रवलब्धि, कोष्टकबुद्धि लब्धि, शीतललेश्या लब्धि, पदानुसारिणी लब्धि, बीजबुद्धि लब्धि, तेजोलेश्या लब्धि, आहारक लब्धि, वैक्रिय देह लब्धि, अक्षीणमहानस लब्धि और पुलाक लब्धि। इनमें नाणादि लब्धियों के अनेक भेद किये गये हैं।
शुद्ध ध्यान के प्रभाव से ध्याता की आत्मा निर्मल हो जाती है, जिसके फलस्वरूप उसमें आठ ऋद्धियाँ (आत्मशक्तियों) प्रकट हो जाती हैं५८
१) ज्ञानऋद्धि :- इसके अठारह भेद हैं - केवल ज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, अवधिज्ञान, चतुर्दशपूर्वज्ञान, दशपूर्वज्ञान, अष्टांगनिमित्त ज्ञान, बीज बुद्धि, कोष्ठ बुद्धि, पदानुसारिणी, संभिन्न श्रोता, पांचों इन्द्रियों की तीव्र शक्ति = दुरास्वाद, प्रत्येक बुद्धता और वाद शक्ति।
२) क्रियाऋद्धि :- इसके नौ भेद हैं - जलचर, अग्निचारण, पुष्पचरण, पत्र चरण, बीज चरण, तंतु चरण, श्रेणी चरण, जंघाचरण और विद्या चरण।
३) वैक्रियऋद्धि :- इसके ग्यारह भेद हैं- अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति (मेरू की चोटी का स्पर्श करें), प्राकाम्य, ईशत्व, वशित्व, अप्रतिघात, अन्तर्धान और कामरूप।
४) तपऋद्धि :- इसके सात भेद हैं- उग्रतप (उग्रोग्रतप), अवस्थितोग्रतप, दीप्त तप, तप्ततप, महातपऋद्धि, घोर तप, घोरपराक्रम, घोरगुण ब्रह्मचारी।
५) बलऋद्धि:- इसके तीन भेद हैं- मनोबली, वचनबली और कायबली।
६) औषधऋद्धि :- इसके आठ भेद हैं- आमीषध, खेलौषध, जल्लौषध, कान, नाक, आंख आदि शरीर के मैल से स्पर्श, विषुडौषध, सर्वोषध, आशीविषौषध, दृष्टिविषौषध।
ध्यान का मूल्यांकन
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