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________________ वर्ण के साथ हमारे शरीर का गहरा संबंध रहा है। शारीरिक स्वास्थ्य, अस्वास्थ्य, मन की स्थिरता, अस्थिरता, आवेगों की कमी या वृद्धि इन रहस्यों पर निर्भर है कि हम किस प्रकार के रंगों का चुनाव करते हैं? नीले रंग की कमी के कारण गुस्सा अधिक बढ़ता है। उसकी पूर्ति होते ही क्रोध शान्त हो जाता है। पीले रंग की कमी से ज्ञानतन्तु निष्क्रिय बन जाते हैं। इसलिए तो “णमो आयरियाणं" पद का ध्यान मस्तिष्क में पीले रंग में करने के लिए कहा है। यह अनुभव सिद्ध बात है कि शरीर में क्रोध की मात्रा बढ़ जाती है, तो उसकी आकृति बदल जाती है। स्थिर मन से पीले रंग का मस्तिष्क में ध्यान करते ही ज्ञानतन्तु शान्त हो जाते हैं और मन स्वस्थ बन जाता है। श्वेत वर्ण की कमी से शरीर में अस्वस्थता बढ़ जाती है और लाल वर्ण की कमी के कारण आलस्य और जड़ता बढ़ती है। काले वर्ण की कमी होने पर प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है। शरीर से संबंधित इन सारी कमियों को पंच परमेष्टि पद के रंगानुसार ध्यान करने से दूर किया जा सकता है। इसलिए भगवान महावीर ने महामंत्र नमस्कार मंत्र के साथ पांचों ही रंग को जोड़ दिया है। "णमो अरहंताणं" का ध्यान श्वेत वर्ण के साथ करें, क्योंकि मस्तिष्क में धूसर (ग्रे कलर) रंग का एक द्रव पदार्थ है। जो समूचे ज्ञान का संवाहक है। पृष्ठरज्जु में भी वह पदार्थ है। मस्तिष्क में "अर्हत्' का श्वेत वर्ण से ध्यान करने पर ज्ञानशक्ति जागृत होती है और स्वास्थ्य लाभ होता है। _ "णमो सिद्धाणं" पद का ध्यान लाल रंग से भृकुटी में करने से आन्तरिक शक्ति जागृत होती है। पिच्युटरी ग्लैण्ड और उसके स्रावों को नियंत्रित करने के लिए लाल वर्ण अधिक महत्वपूर्ण है। "णमो आयरियाणं" पद का पीले वर्ण से हृदय में ध्यान करने पर मन की सक्रियता बढ़ती है। मन स्थिर होता है। मन की स्थिरता ही ध्यान की अवस्था है। "णमो उवज्झायाणं" पद का ध्यान 'नाभि' में नीले वर्ण से करें। नीला रंग शान्तिप्रदाता है। इस रंग का 'नाभि' में ध्यान करने से समाधि प्राप्त होती है। समाधिभाव के कारण कषायों का शमन होता है। अतः यह रंग आत्म साक्षात्कार कराने में सहायक है। __"णमो लोए सव्वसाहूणं" पद का ध्यान काले रंग से 'चरणों' में करें। काला रंग अवशोषक होता है। 'साहू' पद का काले रंग में ध्यान करने से कषायों का शमन और · इन्द्रियों का दमन होता है। ध्यान प्रक्रिया में इन दोनों का शमन, दमन करना ही मुख्य है। साधु संसार तारक होते हैं। उनके चरणों की शरण लेने से भव सागर आसानी से पार किया जा सकता है। इसलिए आगम कथित पांचों रंगों के साथ पंच परमेष्टि पदों का ध्यान करने से मानसिक शक्ति बढ़ जाती है।५२ ४६८ जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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