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गई। मन आत्म-चिन्तन में एकाग्र बन गया। समाधिभाव और निश्चलता प्राप्त हो जाने के कारण चिलातीमुनि के शरीर पर चीटियों ने सैंकड़ों केन्द्र कर डाले फिर भी उन्हें भान नहीं रहा। चीटियों का असह्य उपसर्ग शरीरपर आने पर भी वे सुमेरू की भांति ध्यान में स्थिर रहे। ढाई दिन तक इस घोर उपसर्ग को समभाव से सहन किया तो देवपद पा गये।
। ध्यान से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक लाभ की प्राप्ति चिलातीमुनि को हुई। ध्यान का माहात्म्य अपरम्पार है। उसके बल से अनेकों को नहीं, करोंडों का कल्याण
हुआ है।
__ ध्यान का मानसिक और आध्यात्मिक फल संवर और निर्जरा है। जीव में संवर निर्जरा की अवस्था भावों को निर्मल (शुद्ध) बनाने से प्राप्त होती है। भावों की निर्मलता रंगों के ध्यान से प्राप्त होती है।
रंगों का ध्यान : आगमग्रन्थ में पांच रंग का वर्णन है।४९ कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र और श्वेत इन पाँच रंगों का समायोजन पंच परमेष्टि पद के साथ किया गया है। "णमो अरहंताण" के साथ श्वेत वर्ण का "णमो सिद्धाणं" के साथ लोहित (लाल) वर्ण का, "णमो आयरियाणं" के साथ हारिद्ध (पीले) वर्ण का, “णमो उवज्झायाणं" के साथ नीले वर्ण का और "णमो लोए सव्व साहूणं" के साथ कृष्ण (काला) वर्ण का समावेश किया गया है।५० प्रत्येक वर्ण (रंग) के दो-दो भेद हैं। प्रशस्त और अप्रशस्त। पंच परमेष्टि पदों के साथ जिन वर्णो की कल्पना की गई है, वहाँ प्रशस्त वर्ण से संबंध है। ध्यान साधना में प्रशस्त वर्ण को ही लिया गया है। मुख्यतः ध्यान प्रक्रिया में तीन रंग को लिया गया है। लाल, पीला और श्वेत। तीन प्रशस्त लेश्या के रंग भी ये ही हैं। यथा तेजो लेश्य का रंग लाल है, पद्मम लेश्या का रंग पीला है और शुक्ल लेश्या का रंग श्वेत है। लेश्या का अर्थ वृत्ति में आणविक आभा, कांति, प्रभा और छाया किया गया है।५१
भारतीय परंपरा के त्रिधारा के संन्यासियों के वस्त्रों का रंग भी साधनानुसार ही रखा गया है। वैदिक (हिन्दू) परम्परा के संन्यासियों को गैरिक (लाल) वस्त्र धारण करने का विधान है। बौद्ध भिक्षओं के लिए पीले वस्त्र का विधान है और जैन मुनियों के लिए श्वेत वर्ण का विधान है। पीला रंग ध्यान की अवस्था का प्रतीक है और श्वेत रंग समाधि का प्रतीक है। श्वेत वर्ण विचारों की पवित्रता का भी प्रतीक है। रंगों के साथ मनुष्य के मन का
और उसके शरीर का घनिष्ट संबंध है। मानव शरीर इन्द्रियां, मन के पुद्गलों से निर्मित है। शरीर में स्थित आत्मा मन को आदेश देता है और उन आदेशों को मस्तिष्क में पहुंचाता है। मस्तिष्क ज्ञानेन्द्रियों द्वारा सारे शरीर में सन्देश पहुंचा देता है। पुद्गल वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से निर्मित है। इससे सिद्ध है कि मन के अध्यवसाय (लेश्या) के अनुसार ध्यानावस्था स्थिर होती है।
ध्यान का मूल्यांकन
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