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________________ चण्डकौशिक के कानों में गूंजने लगी कि 'चण्डकौशिक शान्त हो, जागृत 'हो ।' ध्यान के प्रभाव से चण्डकौशिक को आत्मज्ञान (जातिस्मरण) हो गया और झुक गया महावीर के चरणों में । दृढ़ प्रतिज्ञा की कि 'आज से किसी भी जीव को सताऊंगा नहीं, मारूंगा नहीं, कष्ट दूंगा नहीं।' महावीर से क्षमादान लेकर वह उसी समय अनशन व्रत (संलेखना ) अंगीकार करके देह को बाहर और मुंह को बांबी में डालकर स्वचिंतन में लीन हो गया । देह का भान भूल गया। लोगों ने गालियां दी, पत्थर मारे, कंकड़ फेंके, शक्कर दूध से पूजा की गई फिर भी चण्डकौशिक को कुछ भी नहीं था। समभाव की साधना में लीन बन गया। शक्कर की मिठास के कारण हजारों चीटियाँ शरीर से चिपक गईं। देह में असीम पीड़ा हुई फिर भी चण्डकौशिक का ध्यान शरीर पर नहीं था। समभाव की साधना से भयंकर शारीरिक वेदना को सहकर, शुभ ध्यान के परिणाम से तिर्यंच मिटकर देव बन गया । २६ रागादिकल्मष को धोने के लिये ध्यान - जल की ही आवश्यकता है। आत्मज्ञानी तप-संयम के योग से समस्त कल्मषों को धो डालते हैं । २७ यह सब ध्यान का ही प्रभाव है। देह में उत्पन्न वेदनाओं को सहने की ताकद ध्यान से ही प्राप्त होती है। कटपूतना का शीत परीषह भगवान महावीर ने समभाव की साधना से सहन किया तो परमअवधि ज्ञान को प्राप्त कर गये । २८ दृढ़ भूमि के पेढाल उद्यान के 'पोलास' चैत्य में अष्टम तप की आराधना से एक पुद्गल पर दृष्टि केन्द्रित करके भगवान महावीर ध्यानस्थ खड़े थे; उस समय स्वर्ग में शक्रेन्द्र ने अवधिज्ञान से उपयोग लगा कर देखा । अपने सभामण्डप में स्थित देव देवियों के सामने महावीर की साधना की प्रशंसा की। इस प्रशंसा को सुनकर संगम नामक देव उनकी कसौटी (परीक्षा) करने निकल पडा। जहां महावीर ध्यानस्थ थे वहां आया। एक से एक बढ़कर उपसर्गों का जाल बिछाने लगा। शरीर के रोम-रोम में भयंकर वेदनाएं उत्पन्न कर दीं, फिर भी महावीर चलायमान नहीं हुए । किंचित् भी प्रतिकूल उपसर्गों से चलायमान नहीं हुए देखकर संगम उन्हें अनुकूल उपसर्ग देने लगा। सौन्दर्यसम्राज्ञी नारियों के हाव भाव से भी वे विचलित नहीं हुए। बल्कि सुमेरू की तरह महावीर ध्यान में स्थिर थे। संगम के मन में शांति नहीं थी। इसलिए एक रात्रि में महाभयंकर बीस उपसर्ग दिये, जो निम्नलिखित हैं १) प्रलयकारी धूल की वर्षा की जिसके कारण महावीर के कान, नेत्र, नाक आदि में भयंकर वेदनाएं हुई। २) वज्रमुखी चीटियां उत्पन्न की। उन्होंने महावीर के शरीर को कांटकांट कर खोखला बना दिया। ४६० Jain Education International जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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