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________________ उग्गतवाणं' से लेकर 'णमो महादिमहावीरवड्ढमाणाणं' ४८ नंबर तक मंत्र पद रहते हैं।१८६ गणधर वलय यंत्र की विधि - पहले षट्कोण यंत्र का चिंतन करें। उसके प्रत्येक खाने में 'अप्रतिचक्र फट्' इन छह अक्षरों में से एक-एक अक्षर लिखें। इस यंत्र के बाहर उलटे क्रम से 'विचक्राय स्वाहा' इन छह अक्षरों में से एक-एक अक्षर कोने के पास लिखें। बाद में '१. ॐ नमो जिणाणं, २. ॐ नमो ओहिजिणाणं, ३.ॐ नमो परोहिजिणाणं, ४. ॐ नमो सव्वोसहि जिणाणं, ५. ॐ नमो अणंतोहिजिणाणं, ६. ॐ नमो कोट्ठबुद्धीणं, ७. ॐ नमो बीयबुद्धीणं, ८. ॐ नमो पयाणुसारिणं, ९. ॐ नमो संभिन्नसोदारणं, १०. ॐ नमो पत्तेयबुद्धीणं, ११. ॐ नमो सयं बुद्धीणं, १२. ॐ नमो बोहिय बुद्धीणं, १३. ॐ नमो उजमदीणं, १४. ॐ नमो विउलमदीणं, १५. ॐ नमो दसपुव्वीणं, १६. ॐ नमो चउद्दसपुब्बीणं, १७. ॐ नमो अळंगमहाणिमित्तकुसलाणं, १८. ॐ नमो विउव्वणइड्ढिपत्ताणं, १९. ॐ नमो विज्जाहराणं, २०. ॐ नमो चारणाणं, २१. ॐ नमो पण्णसमणाणं, २२. ॐ नमो आगासगामिणं, २३. ॐ नमो आसीविसाणं, २४ ॐ नमो दिट्ठिविसाणं, २५. ॐ नमो उग्गतवाणं, २६. ॐ नमो दित्ततवाणं, २७. ॐ नमो तत्ततवाणं, २८. ॐ नमो महातवाणं, २९. ॐ नमो घोरतवाणं, ३०. ॐ नमो घोरपरक्कमाणं, ३१. ॐ नमो घोरगुणाणं, ३२. ॐ नमो घोरगुणबंभचारिणं, ३३. ॐ नमो आमोसहिपत्ताणं, ३४. ॐ नमो खेलोसहिपत्ताणं, ३५. ॐ नमो जल्लोसहि पत्ताणं, ३६. ॐ नमो दिट्ठोसहिपत्ताणं, ३७. ॐ नमो सव्वोसहिपत्ताणं, ३८. ॐ नमो मणबलीणं, ३९. ॐ नमो वचिबलीणं, ४०. ॐ नमो कायबलीणं, ४१. ॐ नमो अभियसवीणं, ४२. ॐ नमो महुसवीणं, ४३. ॐ नमो सप्पिसवीणं; ४४. ॐ नमो खीरसवीणं, ४५. ॐ नमो अक्खीणमहाणसाणं, ४६. ॐ नमो सिद्धादयाणं, ४७. ॐ नमो वड्ढमाणाणं, ४८. ॐ नमो महादिमहावीर-वड्ढमाणाणं १८७ गणधर वलय को गणेश यंत्र भी कहते हैं। इसके तृतीय वलय की ऊपरी वृत्त रेखा पर पूर्व की ओर मध्य में 'ह्रीं' बीज पद है। इसकी ईकार मात्रा से वलय को त्रिगुणवेष्टित करके अन्त में उसे 'क्रौं' बीज से निरुद्ध किया जाता है।१८८ "ॐ ज्सौं ज्सौं श्रीं ह्रीं धृति -कीर्ति-बुद्धि-लक्ष्मी स्वाहा' इन पदों से पिहले वलय की पूर्ति करते हैं। तदनन्तर पंच परमेष्टि महामंत्र के पांच पदों का पांच अंगलियों में, जैसे कि 'ॐ नमो अरिहंताणं ह्वाँ स्वाहा' अंगुठे में, 'ॐ नमो सिद्धाणं ह्रीं स्वाहा' तर्जनी में, 'ॐ नमो आयरियाणं हूं स्वाहा' मध्यमा में, 'ॐ नमो उवज्झायाणं ह्रौं स्वाहा' अनामिका में, 'ॐ नमो लोए सव्व साहूणं ह्रौं स्वाहा' कनिष्ठा अंगुली में स्थापना करके सकलीकरण किया जाता है और बाद में यंत्र के मध्य बिन्दु सहित 'ॐ' कार की स्थापना करें। इस प्रकार तीन बार अंगुलियों में विन्यास करके यंत्र को मस्तक पर पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा के अंतर भाग में स्थापित करके जाप (ध्यान) करें।१८९ ध्यान के विविध प्रकार ४१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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