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________________ ध्यान ही पदस्थ ध्यान है ऐसा सिद्धान्तपारगामियों का मंतव्य है। १७६ परमेष्टी पद वाचक पैंतीस, सोलह, छह, पाँच, चार, दो और एक अक्षर के मंत्रों का ध्यान करना एवं अन्य गुरुकथित मंत्रों का या पदों का ध्यान करना पदस्थ ध्यान है। ‘णमो अरहंताणं (अरिहंताणं), णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं' यह पैंतीस अक्षरों का मंत्र है। 'अरहंत सिद्ध आयरिय उवज्झाय साहु' अथवा 'अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः' यह सोलह अक्षरों का मंत्र है। 'अरहंत सिद्ध' यह छह अक्षरों का मंत्र है। 'अ सि आ उ सा' यह पाँच अक्षरों का मंत्र है। 'अरहंत' यह चार अक्षरों का मंत्र है। 'सिद्ध' अथवा 'अर्ह' यह दो अक्षरों का मंत्र है। 'अ' यह एक अक्षर का मंत्र है, जो अर्हन्त का वाचक है। 'ओम्' यह पंच परमेष्ठी का वाचक (अ+अ+आ+उ+म्) पंच परमेष्ठी का ध्यान सर्व सिद्धिदायक है। १७७ सिद्धचक्र ध्यान की विधि इस प्रकार है१७८- साधक नाभिकन्दपद्म में सोलह पत्र वाले कमल के प्रत्येक पत्र पर क्रमशः 'अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः' इन सोलह स्वरों का स्मरण करें। तदनंतर हृदयपद्म में कर्णिका सहित कमल की चौबीस पंखुडियों में क्रमशः 'क, ख, ग, घ, ङ', 'च, छ, ज, झ, ज्', 'ट, ठ, ड, ढ, ण', 'त, थ, द, ध, न', 'प, फ, ब, भ, म', इन ककार से लेकर मकार तक पच्चीस व्यंजनों का चिंतन करें। तत्पश्चात् मुखपद्म में अष्टपंखुड़ियों वाले कमल में 'य, र, ल, व', 'श, ष, स, ह, इन आठ अक्षरों का चिंतन करें। इस प्रकार मातृका (वर्णमाला) का ध्यान करने वाला श्रुतज्ञान का पारगामी बनता है। ___ नाभिकन्द के नीचे अष्टपत्र कमल का चिन्तन करें। इन कमल की आठ पंखुड़ियों में क्रमशः सोलह स्वरावली, क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग, य र ल व, और अन्तिम श ष स ह व्यंजनों का चिंतन करें। इन आठ पंखुड़ियों की संधियों में 'ह्रीं' कार रूप सिद्ध स्तुति की स्थापना करें तथा सभी पंखुड़ियों के अग्र भाग में 'ओम् ह्रीं' स्थापित करें। उस कमल के मध्य भाग में प्रथम वर्ण 'अ' और अन्तिम वर्ण 'ह' रेफ '', कला '', बिन्दु '.', सहित हिमवत् उज्ज्वल 'अहं' की स्थापना करें। इस अर्ह शब्द का उच्चारण पहले मन में हस्व नाद से करें, बाद में दीर्घ, प्लुत, सूक्ष्म, अतिसूक्ष्म नाद से उच्चारण करें। वह नाद नाभि, हृदय, कण्ठ की घंटिकादि गांठों को भेदता हुआ उन सबके बीच में से होकर आगे बढ़ा जा रहा है ऐसा चिन्तन करें। नादबिन्दु से अंतरात्मा प्लावित हो रही है ऐसा चिंतन करें। १७९ यह पदमयी देवता का स्वरूप है। एक अमृत के सरोवर की कल्पना करें। उस सरोवर से उत्पन्न सोलह पंखुड़ियों वाले कमल का चिंतन करें। कमल के सोलह पंखुड़ियों पर सोलह विद्यादेवियों का चिंतन करें। तदनंतर देदीप्यमान स्फटिकरत्न की झारी से झरते हुए दुग्ध सदृश अमृत से अपने को ध्यान के विविध प्रकार ४११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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