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________________ इ) लोकान्तिक ९ - १) सारस्वत, २) आदित्य, ३) वह्नि, ४) वरुण, ५) गर्दतोयक, ६) तुषित, ७) अव्याबाध, ८) आग्नेय, ९) अरिष्ट ई) अवेयक ९ - १) भद्र, २) सुभद्र, ३) सुजय, ४) सुमानस, ५) सुदर्शन, ६) प्रियदर्शन, ७) अमोघ, ८) सुप्रतिबद्ध, ९) यशोधर उ) अनुत्तर विमान ५ - १) विजय, २) विजयंत, ३) जयंत, ४) अपराजित, ५) सर्वार्थसिद्ध इस प्रकार २५+२६+१०+३८ = ९९ देवता के भेद हुए। इनके पर्याप्त और अपर्याप्त याने ९९४ २ = १९८ भेद हुए। अन्ततः १४ नारकी + ४८ तिर्यच + ३०३ मनुष्य + १९८ देवता = कुल ५६३ जीव के भेद हुए। __ अजीव राशि के ५६० भेद१) अजीव अरूपी के ३० भेद तथा २) अजीवरूपी के ५३० भेद हैं। १) अजीव अरूपी के ३० भेद अ) धर्मास्तिकाय के ३, आ) अधर्मास्तिकाय के ३, इ) आकाशास्तिकाय के ३, ई) कालद्रव्य १ अ) धर्मास्तिकाय के ३ भेद - १) स्कन्ध (संपूर्ण वस्तु), २) देश (दो, तीन आदि भाग), ३ प्रदेश (जिसका दूसरा भाग न हो सके) आ) अधर्मास्तिकाय के ३ भेद - १ स्कन्ध, २) देश, ३) प्रदेश इ) आकाशास्तिकाय के ३ भेद - १) स्कन्ध, २) देश, ३) प्रदेश ३+३+३+१=१० भेद अन्य प्रकार से इन चारों के - १) द्रव्य, २) क्षेत्र, ३) काल, ४) भाव और ५) गुण इस प्रकार ४४५ = २० भेद होते हैं। इस प्रकार अरूपी के १०+२०=३० भेद हुए। २) अजीव रूपी के ५३० भेदअ) संठाण ५ - १) परिमंडल, २) पट्ट, ३) तंस, ४) चउरंस, ५) आयत। एक एक के २० भेद - २०४५ = १०० आ) वर्ण ५ - १) काला, २) नील, ३) लाल, ४) पीत, ५) श्वेत। एक एक के २० भेद- २०४५ = १०० इ) रस ५ - १) तीखा, २) कडुआ, ३) कषायला, ४) खट्टा, ५) मीठा। एक एक के २० भेद - २०४५ = १०० ई) गंध २ - १) सुगन्ध, २) दुर्गन्ध। एक एक के २३ भेद - २४२३-४६ उ) स्पर्श ८ - १) खुरदरा, २) सुशला, ३) भारी, ४) हलका, ५) शीत, ६) उष्ण, ७) चिकना, ८) लूखा। एक एक के २३ भेद - ८४२३१८४ ध्यान के विविध प्रकार ३८९ Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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