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________________ उत्कलिक वायु, मंडलिकवायु, ओस का जल, महावायु, शुद्धवायु, गुंजवायु, घनवात, तनवात, आदि । इसके दो भेद हैं - सूक्ष्म और बादर। इन दोनों के पर्याप्ता और अपर्याप्ता ऐसे दो-दो भेद हैं। कुल चार भेद हैं। ५. वनस्पतिकाय : इसके दो प्रकार हैं - १. साधारण वनस्पतिकाय (एक शरीर में अनन्त) और २. प्रत्येक वनस्पतिकाय (एक शरीर में एक जीव) इन दोनों भेदों का विशेष वर्णन पीछे कर चुके हैं। साधारण वनस्पतिकाय सूक्ष्म और बादर के भेद से दो प्रकार की हैं और प्रत्येक वनस्पतिकाय बादर ही हैं। इन तीनों के पर्याप्ता और अपर्याप्ता भेद से ६ भेद होते हैं। इस प्रकार पांच स्थावर के कुल ४+४+४+४+६=२२ भेद हुये। इन्हें सिर्फ एक स्पर्शेन्द्रिय ही होती है। इन्द्रियाँ पांच हैं। ३ विकलेन्द्रिय के ६ भेद -१०१ दीन्द्रिय जीवों के (त्वचा, शरीर) और रसन (जीभ) ये दो इन्द्रियाँ होती हैं। जैसे, शंख, सीप, कृमि, लट, अलसिया, काष्ठ के घुण, पोरा आदि अनेक द्वीन्द्रिय जीव हैं। इनके पर्याप्ता और अपर्याप्ता ऐसे दो भेद है। त्रीन्द्रिय जीवों के स्पर्शन, रसन, और घ्राण (नाक) ये तीन इन्द्रियाँ होती हैं। यथा, जूं, खटमल, चींटी, वृश्चिक, कानखजूरा, उदइ, इयल (इयल), धीमेल, गीगोंडा, विष्ठा के कीड़े, कीड़ा, इन्द्रगोप आदि अनेक प्रकार के त्रीन्द्रिय जीव हैं। इसके पर्याप्ता अपर्याप्ता ऐसे दो भेद हैं। चतुरिन्द्रिय जीवों के पूर्वोक्त तीन और नेत्र यह चार इन्द्रियाँ होती हैं। जैसे, अमर, मक्खी, डांस, मच्छर, मधुमक्खी, भंवरा, पतंग, बिच्छ्, तीड, कंसारी, करोळीया, खडमाकडी, आदि की गणना चतुरिन्द्रिय जीवों में होती है। इसके पर्याप्ता-अपर्याप्ता दो भेद हैं। इस प्रकार २+२+२=६ भेद विकलेन्द्रिय जीवों के हैं। पंचेन्द्रिय जीवों के ५३५ भेद - स्पर्शन, रसन, प्राण, चक्षु और श्रोत्र (कान) यह पांचों इन्द्रियाँ जिन जीवों को होती हैं, उन्हें पंचेन्द्रिय कहते हैं। जैसे, नारक, गाय, बैल, मनुष्य, देव-१४ नारक,, २० तिर्यंच, ३०३ मनुष्य और १९८ देवा नारकी के १४ भेदः जिसे नरक गति नाम कर्म का उदय हो, उसे नारकी कहते हैं। इसके सात भेद हैं। १. रत्नप्रभा, २. शर्कराप्रभा, ३. बालुकाप्रमा, ४. पंकप्रभा, ५. धूमप्रमा, ६. तमप्रभा, और ७. तमःतमप्रभा। इन सात के पर्याप्ता और अपर्याप्ता ऐसे १४ भेद हैं। नारक का जघन्य आयुष्य दस हजार वर्ष का और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम का है।१०२ तिर्यंच के २० भेद ः तिर्यच नामकर्म का उदय जिन प्राणियों के हो, उन्हें तिर्यच कहते हैं। तियंच गति के जीवों में स्पर्शन आदि श्रोत्रपर्यन्त पांचो इन्द्रियाँ होती हैं। किन्तु ध्यान के विविध प्रकार ३८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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