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उपयोग है। वह इसी में होता है, अन्य में नहीं। इसीलिए यही एक चेतन द्रव्य है, अन्य सब जड़ द्रव्य है। काल का लक्षण वर्तना है। वह वस्तु में नया पुराना भावी अतीत आदि रूपों का परिवर्तन करता है । इस तरह लक्षणों के ८३ विचार से स्पष्ट होता है कि छहों द्रव्यों में से एक-एक द्रव्य का लक्षण कार्य स्वयं ही कर सकता है, दूसरा द्रव्य नहीं। छ द्रव्य अपने आपमें भिन्न-भिन्न हैं और एक दूसरे से स्वतंत्र हैं।
३) लोक स्थिति का आधार :- सर्वज्ञ भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित लोक स्थिति आठ प्रकार की है -
१) वात-तनुवात आकाश प्रतिष्ठित है, २) उदधि-घनोदधिवात प्रतिष्ठित है, ३) पृथ्वी-उदधि प्रतिष्ठित है, ४) त्रस और स्थावर प्राणी पृथ्वी प्रतिस्थित है, ५) अजीव जीव प्रतिष्ठित है, ६) जीव कर्म प्रतिष्ठित है, ७) अजीव जीव से संगृहीत है, ८) जीव कर्म से गृहीत है। ठाणांग सूत्र में दस प्रकार की लोक स्थिति का वर्णन है।८४
त्रस, स्थावर आदि प्राणियों का आधार पृथ्वी है, पृथ्वी का आधार उदधि है, उदधि का आधार वायु है और वायु का आधार आकाश है। यानी जीव, अजीव आदि सभी पदार्थ पृथ्वी पर रहते हैं और पृथ्वी वायु के आधार पर तथा वायु आकाश के आधार पर टिकी हुई है, जैसे मशक में पवन के आधार पर पानी ऊपर रहता है।८५ ___पृथ्वी को वाताधारित कहने का स्पष्टीकरण यह है कि पृथ्वी की नींव घनोदधि पर आधारित है। घनोदधि जलजातीय है और जमे हए घी के समान इसका रूप है। इसकी मोटाई नीचे मध्य में बीस हजार योजन की है।घनोदधि के नीचे धनवायु का आवरण है, यानी घनोदधि घनवात से आवृत है और इसका रूप कुछ पतले पिघले हुए घी के समान है। लम्बाई-चौड़ाई और परिधि असंख्यात योजन की है। यह घनवात भी तनुवात से आवृत है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई परिधि तथा मध्य की मोटाई असंख्यात योजन की है। इसका रूप तपे हुए घी के समान समझना चाहिये।८६
तनुवात के नीचे असंख्यात योजन प्रमाण आकाश है। इन घनोदधि, घनवात और तनुवात को उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझा जा सकता है कि एक दूसरे के अन्दर रखे हुए लकड़ी के पात्र हो, उसी प्रकार ये तीनों वातवलय भी एक दूसरे में अवस्थित हैं। यानी घनोदधि छोटे पात्र जैसा, घनवात मध्यम पात्र जैसा और तनुवात बड़े पात्र-जैसा है और उसके बाद आकाश है।
४) १४ राजू लोक का आकार एवं क्षेत्रफल ३४३ - घनाकार :- शास्त्र में लोक का आकार 'सुप्रतिष्ठित संस्थान' वाला कहा है। सुप्रतिष्ठित संस्थान के आकार का रूप इस प्रकार होता है -
ध्यान के विविध प्रकार
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