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________________ अनन्तानुबंधी माया घनवंशी (बास की जड़ में रहनेवाली वक्रता - टेदेपन का . सीधा होना संभव नहीं) के समान होती है। अनन्तानुबंधी लोभ किरमिची रंग के समान होता है। जो कषाय आत्मा के देशविरति गुण-चारित्र (श्रावकपन) का घात करे,अर्थात् जिसके उदय से देशविरति आंशिक त्यागरूप अल्प प्रत्याख्यान न हो सके, उस कषाय को अप्रत्याख्यानावरण कहते हैं। इसकी कालमर्यादा एक वर्ष की है, गति तिर्यच की, घात देशविरति का अर्थात् इस कषाय के प्रभाव से श्रावक धर्म की प्राप्ती नहीं है। इस कषाय के चार भेद को दृष्टांत द्वारा समझाया गया है - अप्रत्याख्यानावरण क्रोध पृथ्वी में खींची गई रेखा के समान है। अप्रत्याख्यानावरण मान अस्थि (हड्डी को नमाने) के समान है। अप्रत्याख्यानावरण माया भेड के सींग (भेड़ के सींगों में रहने वाली वक्रता कठिन परिश्रम से) के समान होती है। अप्रत्याख्यानावरण लोभ कीचड़ के समान होता है। जिस कषाय के प्रभाव से आत्मा को सर्वविरति चारित्र प्राप्त करने में बाधा हो - श्रमण धर्म की प्राप्ति न हो, उसे प्रत्याख्यानावरण कहते हैं। इस कषाय की कालमर्यादा चार मास, गति मनुष्य की और घात सर्वविरति का होता है। इस कषाय के चार भेद को भी दृष्टांत द्वारा समझाया है - प्रत्याख्यानावरण क्रोध धूलि में खींची गई रेखा के सदृश है। प्रत्याख्यानावरण मान सूखे काष्ठ में तेलादि की मालिश से नरमाई के समान है। प्रत्याख्यानावरण माया गोमूत्रिका के समान है। (कुटिल स्वभाव वाला) प्रत्याख्यानावरण लोभ काजल के रंग समान है। जिस कषाय के उदय से आत्मा को यथाख्यातचारित्र की प्राप्ती न हो, अर्थात् जो कषाय परीषह तथा उपसगों के द्वारा श्रमण धर्म का पालन करने को प्रभावित करे, उसे संज्वलन कहते हैं। इसका कालमान पन्द्रह दिन का है,गति देव की है तथा यथाख्यात चारित्र का घात करती है। इसको भी चार भेदों के उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया गया है - संज्वलन क्रोध जल में खींची गई रेखा सदृश है। संज्वलन मान वेत्रलता के समान क्षण मात्र में नमने वाला है। संज्वलन माया अवलेखिका (वास के छिलके) के समान है। संज्वलन लोभ हल्दी के रंग के समान है। ३७४ जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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