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________________ आस्रव :- मन, वचन और काय के व्यापार को आस्रव कहते हैं। इसे ही योग कहते हैं अर्थात त्रिविध (मन, वचन, काय) क्रिया द्वारा आत्मा के प्रदेशों का परिस्पन्दहलन-चलन की क्रिया ही योग कहलाती है। जैसे सरोवर में जल आने के मार्ग अनेक होते हैं, वैसे ही कर्मबंध के अनेक मार्ग हैं। योग को ही आस्रव कहा है। वह दो प्रकार का है, शुभानव और पापासव। अनुकम्पा और शुद्ध उपयोग पुण्य कर्म के आस्रव है और इनके विपरित परिणाम पापकर्म के आस्रव हैं। अनुकम्पा आस्रव के तीन प्रकार हैं - १) धर्मानुकम्पा, २) मिश्रानुकम्पा, और ३) सर्वानुकम्पा। शुद्धोपयोग के भी दो प्रकार हैं - यति (श्रमण) शुद्ध संप्रयोग और २) गृहस्थ (श्रावक) शुद्ध संप्रयोग। यह क्रमशः महाव्रत और अणुव्रत के पालन से पुण्यासव है। यह अशुभास्रव से बचने का उपाय है। हिंसादि आस्रव को दृढ़ व्रतों की अर्गलाओं से रोका जाता है। आस्रव के अपाय का चिन्तन करके संवर के उपाय में प्रवेश करना ही अपाय विचय धर्मध्यान है।४४ विकथा :- स्त्री, भक्त (भोजन), देश एवं राज (चोरादि) की बातें करना विकथा है। स्त्रीकी विकथा करने से ब्रह्मचर्य में दोष लगता है। मानसिक विकृति के कारण साधक संयम मार्ग से पथभ्रष्ट हो जाता है, स्मृति विकृत हो जाती है और अन्ततोगत्वा शारीरिक शक्तियां भी क्षीण होने लगती हैं। इसलिए शास्त्रकार ने स्त्री विकथा के चार प्रकार बताये हैं - १) स्त्री जाति कथा, २) स्त्री कुल कथा, ३) स्त्री रूप कथा और ४) स्त्री नेपथ्य कथा। इन चारों प्रकार की चर्चाओं से जो साधक बचने का प्रयत्न करता है, वह भद्र स्वभावी होता है। भक्त कथा में खाने-पिने के विषय में लम्बी-चौड़ी बातें करने का वर्णन है। संयमियों के लिये यह वर्ण्य है। भक्त कथा के भी चार प्रकार हैं - १ अवाय भक्त कथा (शाक घृतादि वस्तू का प्रमाण), २) निर्वाप भक्त कथा (अनेक प्रकार के रस, मेवे आदि), ३) आरंभ भक्त कथा और ४) निष्ठान भक्त कथा (सामग्री के परिणाम से चीजें बनाना)। स्वाद विजेता के लिए भक्तकथा अपायजन्य है। इंगालादि दोषों को उत्पन्न करने वाली है। आहार संज्ञा की जनक है। अतः भोग लालसा से उत्पन्न दोषों का उपाय करना ही ध्यान है। तीसरी देशकथा के अंतर्गत देशविदेश से संबंधित चर्चा की जाती है। इसके भी चार भेद हैं - १) देश विधि कथा, २) देश विकल्प कथा, ३) देश छंद कथा, और ४) देश नेपथ्य कथा। इस विकथा से रागद्वेषादि की उत्पत्ति होती है। अतः साधक के लिये इन कथाओं का निषेध है। चौथी राज कथा के अन्तर्गत राजनीति, राजशोभा एवं राजनिन्दा आदि की चर्चाएं की जाती हैं। राजकथा भी चार प्रकार की है। १) अतियान कथा, २) निर्याण कथा, ३) बलवाहन कथा, और ४) कोष-कोठार कथा। राजकथा के करने से अनेक दोष लगते हैं। अतः अपायविचय धर्मध्यान में इनका चिन्तन करके सुकथा का ध्यान करें। ये चारों ही प्रकार की विकथा अनर्थ को निर्माण करनेवाली हैं। इसलिए इनका चिन्तन करना अपाय विचय धर्म ध्यान है।४५ जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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