________________
ध्यान का प्रत्यक्ष फल : ध्यान में स्थित आत्मा को कषायों से उत्पन्न होने वाले मानसिक दुःखों, ईर्ष्या, खेद, शोक आदि पीड़ित नहीं करते तथा ध्यान से भावित आत्मा को शीत, ताप आदि अनेकानेक शारीरिक दुःख भी चलित नहीं करते; क्योंकि वह कर्मनिर्जरा की अपेक्षा वाला है।८१
आगम कथित चारों ही ध्यान का फल निम्नलिखित है-८२ आर्तध्यान से तिर्यचगति, रौद्रध्यान से नरक गति, धर्मध्यान से स्वर्ग एवं मोक्ष तथा शुक्लध्यान से मोक्ष (सिद्धगति) मिलता है। ध्यान के स्वामी
आगमकथित चारों ध्यान के स्वामी गुणस्थानवी जीव हैं। इनका वर्णन आगे करेंगे। (२) ध्यान का लक्ष्य 'मन की एकाग्रता'
आत्मा के अस्तित्व की अभिव्यक्ति का प्रधान कारण, आत्म व्यापारों का समर्थ वाहन और जगत् के साथ आत्मा का अनुसन्धानक मन ही है। सोचना, समझना, चिन्तन करना, तर्कना करना ये सब क्रियायें मन की शक्ति द्वारा ही की जाती है। जिसके द्वारा विचार किया जाता है ऐसी आत्मिक शक्ति मन है तथा इस शक्ति के विचार करने में सहायक होने वाले एक प्रकार के सूक्ष्म परमाणु भी मन ही कहलाते हैं। पहले को भाव मन
और दूसरे को द्रव्यमन से अभिहित करते हैं। मन का स्वरूप: . मन का स्वभाव चंचल है। विविध प्रकार के पुद्गल वर्गणाओं के स्कन्धों का अनुभव करके रागद्वेष मोहादि भावों में सतत रमण करना ही मन का स्वभाव है। तरंगित जल में स्थित वस्तु का यथार्थ प्रतिभास नहीं हो सकता वैसे ही रागद्वेषादि कल्लोलों से आकुलित हुए मन द्वारा आत्मदर्शन नहीं हो सकता। अत्म दर्शन कराने में मन अधिक सहयोगी है। मन के दो प्रकार हैं- सविकल्प और निर्विकल्प। वस्तुतः निर्विकल्प मन ही आत्म तत्त्व है, सविकल्प मन तो 'आत्मभ्रान्ति' रूप है। मन की अस्थिरता ही रागादि परिणति का कारण है और मन की स्थिरता ही आत्मा का वास्तविक रूप है। मन ही कर्म बन्धन और मुक्ति का कारण है। ध्यानस्थयोगी प्रसन्नचन्द्र राजर्षि को ध्यान से विचलित करने वाला और पुनः ध्यान में स्थिर करनेवाला मन ही है। निश्चयनय की दृष्टि से सिद्धात्मा की तरह सबकी आत्मा है। आत्मस्वरूप का मान स्थिर मन ही करा सकता है; चंचल मन नहीं। क्योंकि रागद्वेषात्मक जीवों के अनुकूल प्रतिकूल परिस्थिति का कारण मन है और रागद्वेषात्मक वृत्ति के निरोध होते ही मोक्ष का कारण भी मन ही है। अतः स्थिर मन 'आत्म तत्त्व' है और अस्थिर मन 'आत्मभ्रान्ति' है।८३ मन मर्कट चारित्र घडे में भरे २७४
जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org