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________________ वस्तुतः जब मन क्रमशः संकेंद्रण की ओर अग्रसर होता है तब ही 'वस्तु के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान होता है। इस दशा में विचार सीमित क्षेत्र में केन्द्रित नहीं होते, किन्तु अधिक गहराई में जाकर 'तल्लीनता' का अनुभव करते हैं। किसी कार्य या अध्ययन में एकाग्रता आना ही 'संकेंद्रण' अवस्था है। २७ विचारणा और संकेंद्रण के क्षेत्र में 'मन' अनेक प्रकार के विचारों से अनुप्रेरित होता है। इसे ही 'धारणा' कहते हैं जो पतंजलि के योगाष्ट में पारिभाषिक शब्द है। इस अवस्था में 'मन' की दशा मानसिक प्रक्रिया से भिन्न होती है। क्योंकि उसमें विचारों का समूह अनियंत्रित होता है और 'ध्यान' की अवस्था में आते ही विचारों का समूह सीमित हो जाता है। इसीलिये विचार प्रक्रिया में विचारों का क्रम ज्ञानेन्द्रियों के साथ चलता है२८ और संकेन्द्रित मानसिक क्रिया (ध्यान) में ज्ञानेन्द्रियों का अस्तित्व पृष्ट भूमि में चला जाता है। इसीलिये 'ध्यान' यह एक मानसिक प्रक्रिया का विशिष्टीकृत एवं केन्द्रित रूप है। साधारण विचार-प्रक्रिया में अनुभव अनेक मुखी होता है जब कि 'ध्यान' में इसका स्वरूप अधिक तीव्र और केन्द्रित होता है। जहाँ अन्य अनुभव या विचार व्यवधान नहीं डाल सकते हैं। सामान्य विचार -प्रणाली में मानसिक क्रिया के भिन्न-भिन्न क्षण होते हैं जो अनुभव और प्रतीति के रूप में समानान्तर रूप से चलते हैं। किन्तु 'ध्यान' में ये दोनों प्रक्रियाएं केवल मात्र एक 'पदार्थ' या 'पक्ष' पर केन्द्रित होती हैं। इसलिये 'ध्यान' यह मन की एक विशिष्टकृत केन्द्रित क्रिया है। __ ध्यान चित्त शुद्धि का एक मनोवैज्ञानिक क्रियात्मक रूप है। चित्त शुद्धि के लिए मनोविज्ञान में विविध प्रणालियों (विधियां) का प्रयोग किया गया है, जैसे कि२९ १. अन्तर्दर्शन, २. निरीक्षण, ३. प्रयोग, ४. तुलना और ५. मनोविश्लेषण। इसे आज कलकी भाषा में चित्त-विश्लेषण की विधि भी कहते हैं३० इन विधियों के अतिरिक्त अन्य भी प्रणालियाँ मिलती हैं। - १. विश्लेषात्मक प्रणाली, २. विकलनात्मक प्रणाली, ३. उदात्तीकरण और ४. निर्देशनात्मक प्रणाली। 'ध्यान' चित्त शुद्धि की वह प्रक्रिया है, जिससे चित्त में स्थित वासना, कामना, संशय, अन्तर्द्वन्द्व, तनाव, क्षोभ, उद्विग्नता, अशांति आदि विकार दूर होकर मन की स्वस्थता प्राप्त होती है। ध्यान साधना जीवन में आनन्दपूर्वक जीने की कला सीखाता है। जीवन जीने की कला हस्तगत होते ही ध्यान बल से मन के असीम शक्ति का आविर्भाव होता है। आधुनिक मनोवैज्ञानिक ध्यान का स्वरूप यही है कि मन की असीम शक्ति को ध्यान द्वारा विकसित करें। जैन धर्म में ध्यान का स्वरूप २६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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