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अग्रगण्य स्थान है। शरीर के विषय में आगे विचार करेंगे। आधुनिक मनोविज्ञान शरीर
और मन के अनुसंधान में लगा हुआ है। मनोवैज्ञानिक केरिंग्टन का कथन है२० कि ध्यान साधना एक मानसिक साधना है। मानसिक प्रक्रियाओं के कुछ महत्त्वपूर्ण रहस्य योगियों को ही ज्ञात हैं, जिसे हम अभी तक भी जान नहीं पाये हैं। मानसिक क्षेत्र का स्वरूप केवल मात्र 'मन' तक ही सीमित नहीं है, अपितु मन से भी अधिक सूक्ष्म 'प्रत्ययों' का आविष्कार भारतीय मनोविज्ञान की देन है, जो आधुनिक परा-मनोविज्ञान का ही एक क्षेत्र है। इसीलिये योगी अरविन्द ने अपनी ध्यान प्रक्रिया में 'अति मानस' की कल्पना की है जो मन की अतिसूक्ष्म स्थिति है अथवा 'वह' मानसिक आरोहण का महत्त्वपूर्ण कदम है।२१ मानसिक चेतना के विकास क्रम में 'मन' का प्रथम चरण है। उसके माध्यम से चेतना का ऊर्ध्वारोहण सम्भव है।
हिन्दू आधुनिक मनोविज्ञान में मन से भी अतिसूक्ष्म 'प्रत्ययों' की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। इन प्रत्ययों का स्वरूप सापेक्ष है, निरपेक्ष नहीं। आधुनिक विज्ञान में सापेक्षवाद ही सत्य है, क्योंकि मन के आगे का आरोहन निरपेक्ष न होकर सापेक्ष है। इन्द्रियां सबसे अधिक स्थूल हैं और इनका संयोजन अनुशासन 'मन' के द्वारा होता है। अतः इन्द्रियों से 'मन' सूक्ष्म है। मन से सूक्ष्म 'प्राण' है, प्राण से सूक्ष्म 'बुद्धि' है और बुद्धि से सूक्ष्म 'आत्मा' है। २२ मन को केन्द्रित करने के लिये सर्वप्रथम इन्द्रियों पर संयम आवश्यक है। इसे ही इन्द्रिय निग्रह की संज्ञा दी जाती है। मनोविज्ञान की शब्दावली में इसे प्रवृत्तियां, उन्नयन अथवा उदात्तीकरण कहते हैं। यह उन्नयन की प्रक्रिया कल्पना, विचार, धारणा, चिन्तन आदि के क्षेत्रों में क्रियाशील होती है। जब 'मन' किसी भी एक 'वस्तु' के प्रति केन्द्रित होने की अवस्था में आता है, तब मन का केन्द्रीकरण ही वह आरंभबिंदु हैं, जहाँ से 'ध्यान' के स्वरूप पर विचार किया जाता है।
___ मानसिक प्रक्रिया में 'ध्यान' की स्थिति तक पहुंचने के लिये तीन मानसिक स्तरों या प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। वे मानसिक स्तर इस प्रकार हैर३ - १. चेतन मन, २. चेतनोन्मुख मन और ३. अचेतन मन। इन मन के तीन स्तरों को फ्रायड ने नाट्यशाला के समान बताया है। नाट्याशाला की रंगभूमि के समान 'चेतन मन' है। नाट्यशाला की सजावट के समान अचेतन मन है और रंग शाला में प्रवेश करने की भांति चेतनोन्मुख है। इस मन को बर्फ के समान भी बताया गया है।
___मनोवैज्ञानिकों ने मन की वृत्ति तीन प्रकार बताई है२४ - १. ज्ञानात्मक, २. वेदनात्मक और ३. क्रियात्मक। ध्यान मन की क्रियात्मक वृत्ति है एवं वह चेतना की सबसे अधिक व्यापक क्रिया का नाम है। ध्यान मन की वह क्रिया है - जिसका परिणाम ज्ञान है। प्रत्येक प्रकार के ज्ञान के लिये ध्यान की आवश्यकता है। जागृत अवस्था में हर
जैन धर्म में ध्यान का स्वरूप
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