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आयंबिलए आयाम सित्थभोइ अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे पंताहारे लूहाहारे से तं रसपरिच्चाए।
__ ओववाइयसुत्तं गा. १८ (छ) सर्वार्थ सिद्धि (पूज्यपाद) ९/१९ की वृत्ति २१३. (क) भगवइ (सुत्तागमे) २५/७/८०१
(ख) ओववाइयसुत्तं (सुत्तागमे) १८ (ग) स्थानांगसूत्र ७/१४
(घ) ओववाइय (सुत्तागमे) पृ. ९ २१४. (क) भगवइ (सुत्तागमे) २५/७/८०१
(ख) ओववाइयसुत्तं (सुत्तागमे) १८ २१५. (क) दसविहा पडिसेवणा पण्णत्ता, तं जहा
दप्प पमायऽणाभोगे आउरे आवइस य। संकिए सहसक्कारे, भयप्पओसा य विमंसा।।
स्थानांगसूत्र (आत्मारामजी म.) १०/३१ (ख) दप्पे सकारणंमि य, दुविधा पडिसेवणा समासेणं।
एक्केक्का वि य दुविधा मूलगुणे उत्तरगुणे य।। सकारणंमि यत्ति णाणदंसणाणि अहिकिच्च संजमादिजोगेसु य, असरमाणेसु पडिसेव त्ति, सा कप्पे।
निशीथ सूत्रे, भाग-१, भाष्य गा. ८८ एवं चूर्णि (ग) दप्पो तु जो पमादो।
निशीथसूत्रे, भाष्य गाथा ९१ (घ) दप्पे कप्प पमत्ताणभोग आहचतो य चरिमा तु। पडिलोम-परूवणता, अत्थेणं होति अणुलोमा।।
निशीथ सूत्र, भाष्य गा. १० जा सा अपमत्त-पडिसेवा सा दुविहा अणाभोगा आहच्चओ या
___ निशीथ सूत्रे, भाष्य गाथा १० एवं चूर्णि अणाभोगो णाम अत्यंतविस्मृतिः।
निशीथ सूत्र, भाष्य गा. ९५ की चूर्णि (ङ) प्रायः प्राणी करोत्येव यत्र चित्तं सुनिर्मलम् तदाहुः शब्द सूत्रज्ञाः प्रायश्चित्तं यतीश्वराः।।
सिद्धांतसार १०/१९
जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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