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________________ (ख) (ग) ओववाइयसुत्त (सुत्तागमे) १८ जा सा अणसणा मरणे दुविहा सा वियाहिया। सवियारमवियारा कायचिट्ठ पइ भवे। उत्तराध्ययन सूत्र ३०/१२ (च) २१०. (क) भगवइ (सुत्तागमे) २५/७/८०१ (ख) ओववाइयसुत्त (सुत्तागमे) १८ उत्तराध्ययन सूत्र ३०1८, १४, १५, १६, १९, २०, २१, २२, २३, २४. (घ) स्थानांगसूत्र (सुत्तागमे) ३/३/२३८ (ङ) तत्त्वार्थसूत्र (पं. सुखलालजी) (सुत्तागमे) ९/१९ कुत्सिता कुटी कुक्कुटी शरीरमित्यर्थः। तस्याः शरीररूपायाः कुक्कुटया अण्डकमिवाण्डकं मुखं। अभिधान राजेन्द्र कोश भा. २ पृ. ११८२ (छ) जत्तिओ जस्स पुरिसस्स आहारो तस्साहारस्स बत्तीसइमो भागो तप्पुरिस वेक्खाए कवले भगवइ सूत्र ७११ वृत्ति २११. — (क) भगवइ (सुत्तागमे) २५/७/८०१ (ख) ओववाइयसुत्तं (सुत्तागमे) १८ दशवैकालिक १/५, ५/१/२ (घ) दशवैकालिक (हरिभद्रीयवृत्ति पत्र) १६३ ___णव कोडिपडिसुद्धे भिक्खे पण्णत्ते। ठाणे ९१ (च) णवकोडिपडिसुद्धे भगवइ ७/१ (छ) दशवैकालिक ५/१/१०० णव कोडिपडिसुद्धे भिक्खे पण्णत्ते...... स्थानांगसूत्र ९३ भगवइ (सुत्तागमे) २५/७/८०१ (ख) ओववाइयसुत्तं गा. १८ (ग) ठाणे ५/१/४८५ (घ) उत्तराध्ययनसूत्र ३०/१० (ङ) मनसो विकृति हेतुत्वाद् विकृतयः __ योगशास्त्र स्वोपज्ञ भाष्य ३ की वृत्ति (च) अणेगविहे पण्णत्ते तं जहा-णिव्वियतिए पणीयरसपरिच्चाए २१२. (क) २२६ जैन साधना का स्वरूप और उसमें ध्यान का महत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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