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न य तस्स तन्निमित्तो बंधो सुहुमो वि देसिओ समये। अणवनो उवओगेण सव्वभावेण सो जम्हा।।
उद्भुत, योगशास्त्र (हरिभद्र) पृ. ६९-७० (ग) ज्ञानार्णव १८/५,६ (क) योग शास्त्र १/३७ (ख) ज्ञानार्णव पृ. १७७
(ग) धर्मामृत (अनगार) ४/१६५-१६६ १९४. विघ्नांगारादिशंकाप्रमुखपरिकरैरुद्गमोत्पाददोषैः,
प्रस्मार्य वीरचर्जितममल मधः कर्मभुग भावशुद्धम्। स्वान्यानुग्राहि देहस्थितिपटु विधिवद्दत्तमन्यैश्च भक्त्या कालेनं मात्रयाऽश्नन् समिति मनुषजत्येषणास्तपोभूत्।।
धर्मामृत (अणगार) ४/१६७ १९५. (क) आहाकम्मुदेसिय पूइकम्मे य मीसजाए य।
ठवणा पाहुडियाए पाओयर कीय पामिच्चे।। परियट्टिए अब्मिहडे उन्मिन्न मालोहडे इय। अच्छिन्ने अणिसिढे अज्झोयरए य सोलसमे।
पिण्डनियुक्ति (भद्रबाहुस्वामी) ९२-९३ (ख) धाई दुई निमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छा या
कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस एए। पुवि पच्छा संथविज्जा भंते य चुण्ण जोगे या उप्पायणाइ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य।।।
पिण्ड नियुक्ति, ४०८-९ संकिय मक्खिय निक्खित्त पिहिय साहरिय दायगुम्मीसे। अपरिणय लित्त छिड्डय (छिद्दय) एषण दोसा दस हवंति।।
पिण्ड नियुक्ति ५२० (घ) ओघनियुक्ति गा. ४०११ १९६. भगवती सूत्र १/१ १९७. छण्हमण्णयरे ठाणे कारणंमि उ आगए।
आहारेन्जा (उ) मेहावी संजए सुसमाहिए।। वेयणवेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमट्ठाए।
जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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