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________________ १९३. न य तस्स तन्निमित्तो बंधो सुहुमो वि देसिओ समये। अणवनो उवओगेण सव्वभावेण सो जम्हा।। उद्भुत, योगशास्त्र (हरिभद्र) पृ. ६९-७० (ग) ज्ञानार्णव १८/५,६ (क) योग शास्त्र १/३७ (ख) ज्ञानार्णव पृ. १७७ (ग) धर्मामृत (अनगार) ४/१६५-१६६ १९४. विघ्नांगारादिशंकाप्रमुखपरिकरैरुद्गमोत्पाददोषैः, प्रस्मार्य वीरचर्जितममल मधः कर्मभुग भावशुद्धम्। स्वान्यानुग्राहि देहस्थितिपटु विधिवद्दत्तमन्यैश्च भक्त्या कालेनं मात्रयाऽश्नन् समिति मनुषजत्येषणास्तपोभूत्।। धर्मामृत (अणगार) ४/१६७ १९५. (क) आहाकम्मुदेसिय पूइकम्मे य मीसजाए य। ठवणा पाहुडियाए पाओयर कीय पामिच्चे।। परियट्टिए अब्मिहडे उन्मिन्न मालोहडे इय। अच्छिन्ने अणिसिढे अज्झोयरए य सोलसमे। पिण्डनियुक्ति (भद्रबाहुस्वामी) ९२-९३ (ख) धाई दुई निमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छा या कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस एए। पुवि पच्छा संथविज्जा भंते य चुण्ण जोगे या उप्पायणाइ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य।।। पिण्ड नियुक्ति, ४०८-९ संकिय मक्खिय निक्खित्त पिहिय साहरिय दायगुम्मीसे। अपरिणय लित्त छिड्डय (छिद्दय) एषण दोसा दस हवंति।। पिण्ड नियुक्ति ५२० (घ) ओघनियुक्ति गा. ४०११ १९६. भगवती सूत्र १/१ १९७. छण्हमण्णयरे ठाणे कारणंमि उ आगए। आहारेन्जा (उ) मेहावी संजए सुसमाहिए।। वेयणवेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमट्ठाए। जैन साधना पद्धति में ध्यान योग २२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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