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________________ १६४. १६५. ६५. सत्यशीलव्रतादीनामहिंसा जननी मता।। ज्ञानार्णव ८/४२ १६३. (क) प्रियं पथ्यं वचस्तथ्यं सुनृतव्रतमुच्यते। तत् तथ्यमपि नो तथ्यम्, अप्रियं चाहितं च यत्।। योगशास्त्र १/२० (ख) दशवैकालिक ४/६ (ग) दशवैकालिक ६/१३ लोकम्मि सारभूयं गंभीरतरं महासमुद्दाओ थिरतरगं मेरुपव्वयाओ सोमतरगं चंदमंडलाओ दित्ततरं सूरमंडलाओ विमलयरं सरयनहलयलाओ.......... पण्हावागरणं (सुत्तागमे) पृ. १२२७ पण्हावागरणं (सुत्तागमे) पृ. १२२८ १६६. (क) योगशास्त्र १/२२ (ख) ज्ञानार्णव १०/१५ (ग) आचारांगसूत्र (शीलांकायार्च टीका) २/३/१५ (घ) दशवैकालिक ४/७ १६७. द्रव्यादि चार प्रकार की चोरी १६८.(क) आचारांगसूत्र (शीलांकाचार्य टीका) २/३/१५ (ख) स्थानांग सूत्र (आत्मा. म.) ४/१० (ग). दशवैकालिक ४/८ १६९. देव दानव गन्धव्वा जक्ख-रक्खस किजरा। बम्भयारिं नमंसन्ति दुक्करं जे करन्ति ।। उत्तराध्ययनसूत्र १६/१६ जहा किम्पाग फलाण, परिणामो न सुन्दरो। एवं भुत्ताणं भोगाणं, परिणामो न सुन्दरो।। उत्तराध्ययनसूत्र १९/१७ दिव्योदारिक कामानां कृतानुमतिकारितैः। मनो वाक् कायतस्त्यागो ब्रह्माष्टादशधा मतम्। योगशास्त्र १/२३ १७०. १७१. जैन साधना पद्धति में ध्यान योग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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