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४७. नाणंच दंसणं चेव, चरितं च तवो तहा।
एस मग्गुत्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहि।। नाणंच दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। एयं मग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गइं।।
उत्तराध्ययन सूत्र, २८/२ - ३ ४८. (क) योगविंशिका (हरिभद्र) गा. २ (ख) अध्यात्मसार..... प्रकरणरत्नत्रयी (उपा. यशोवि.) .
योगाधिकार, गा.८३ (ग) विशेषावश्यक भाष्य, गा. ३
(घ) आवश्यक नियुक्ति (हरिभद्रीय टीका) गा. १०१-१०२ ४९. जीवो परिणमदिजहा सुहेण असुहेण वा सुहो असुहो।
सुद्धेण तदा सुद्धो हवदि हि परिणाम समावो।। धम्मेण परिणदप्पा-अप्पा जदि सुद्धसंपयोगजुदो। पावदि णिव्वाण सुहं सुहावजुत्तो व सग्गसुहं।।
प्रवचनसार (कुन्दकुन्दाचार्य) 'ज्ञानाधिकार' १/९, ११ ५०. नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा। अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं।।
उत्तराध्ययन सूत्र २८/३० ५१. (क) सम्यक्त्व ज्ञान चारित्र सम्पदः साधनानि मोक्षस्य। तास्वेकतराऽ भावेऽपि मोक्षमार्गोऽप्यसिद्धिकरः।।
प्रशमरतिप्रकरणम् गा. २३० तत्वार्थ सूत्र, १/१ आहेसु विज्जा चरणं पमोक्खं
सूत्रकृतांगसूत्र १/१२/११ सदुष्ट ज्ञान चारित्रत्रयं यः सेवते कृती। रसायणमिवातकर्य सोऽमृतं पदमश्नुते।। महापुराण, ११/५९ सम्मदंसणं पढम सम्मं नाणं बिइज्जियं। तइयं च सम्मचारित्तं एगभूयमिमं तिगं।।
महानिशीथ (क) सव्वण्णुहि सव्वदरिसीहिं।
नन्दीसूत्र गा. ४१ (सुत्तागमे) (ख) जाणइ पासह।
नन्दीसूत्र गा. १० (सुत्तागमे) (ग) सव्वनू सव्वभावदरिसी।
आचारांग सूत्र २/१५ ५३. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, वृत्ति, द्वितीय वक्षस्कार
(ग)
जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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