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व्युत्सर्ग पडिमा : विवेक पडिमा द्वारा हेय वस्तुओं का भेदज्ञान स्पष्ट होते ही उनका विसर्जन किया जाता है। औपपातिक सूत्र में सात प्रकार के व्युत्सर्ग बताये हैं - शरीर व्युत्सर्ग, गण व्युत्सर्ग, उपाधि व्युत्सर्ग, भक्तपान व्युत्सर्ग, कषाय व्युत्सर्ग, संसारव्युत्सर्ग और कर्म व्युत्सर्ग। इस पडिमा में विसर्जन की क्रिया ही मुख्य है।
भद्रा पडिमा : इस पडिमा में पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर इन चार दिशाओं में चार-चार प्रहर तक कायोत्सर्ग किया जाता है। षष्ठ भक्त (दो उपवास) तपाराधना से दो दिन तक निरन्तर कायोत्सर्ग से भद्रा पडिमा सम्पन्न की जाती है।
सुभद्रा पडिमा : इस पडिमा की साधना पद्धति वृत्तिकार के पहले ही विच्छिन्न हो गई थी।
महाभद्रा पडिमा : इस पडिमा में पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर इन चारों दिशाओं में क्रमशः एक-एक अहोरात्र तक कायोत्सर्ग किया जाता है। इसकी कालमर्यादा चार अहोरात्र (दिन-रात) की होती है ओर दशम भक्त (चार उपवास) से पडिमा पूर्ण की जाती है।
सर्वतोभद्रा पडिमा : पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर ये चार दिशायें आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य और ईशान कोण ये चार विदिशायें तथा ऊर्ध्व और अहो (अधः) इन दसों दिशाओं में क्रमशः एक-एक अहोरात्र तक कायोत्सर्ग किया जाता है। ऊर्ध्व दिशा के काल में ऊर्ध्वलोक में अवस्थित द्रव्यों का ध्यान किया जाता है और अधोदिशा के कायोत्सर्ग काल में अधोलोक में स्थित द्रव्य का ध्यान किया जाता है। इसका कालमान दस-दिन रात का है। यह पडिमा बावीस भक्त (दस दिन के उपवास) से पूर्ण होती है। भद्रा पडिमा से लेकर सर्वतोभद्रपडिमा तक की आराधना स्वयं भगवान महावीर ने भी की
थी।
शूद्रिका सर्वतोभद्र पडिमा : इस पडिमा की पद्धति भिन्न है। इसमें एक उपवास से लेकर पांच उपवास तक चढ़ा जाता है। इसकी प्रक्रिया पूर्ण होने में ७५ दिन तपस्या के और २५ दिन पारणा के कुल १०० दिन लगते हैं। इसकी विधि आदि में एक अंक और अंत में पांच अंक स्थापित किये जाते हैं। शेष संख्या बीच में भर दी जाती है। दूसरी पंक्ति में प्रथम पंक्ति के मध्य अंक को आदि में रखकर आगे क्रमशः भरते रहते हैं। इसी क्रम से पाँच पंक्तियों भरी जाती हैं।
महतीसर्वतोभद्रा पडिमा : इसकी प्रक्रिया में एक अंक से लेकर सात अंक होते हैं। इसे पूर्ण होने में १९६ दिन तप के और ४९ दिन पारणे के, कुल २४५ दिन लगते हैं। इसकी विधि क्षुद्रिकाभद्र पडिमा के समान ही है।। जैन साधना पद्धति में ध्यान योग
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