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________________ ग्यारह उपासक पडिमा श्रावक की साधना को तीन रूप में प्रतिपादित किया जाता है। - दर्शन श्रावक की साधना, व्रती श्रावक की साधना और पडिमाधारी श्रावक की साधना। अंतिम साधना श्रावक के लिये उत्कृष्ट मानी जाती है। स्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परानुसार ग्यारह उपासक पडिमा के नामों में कहीं-कहीं अंतर दृष्टिगोचर होता है। उपासकों की ग्यारह पडिमा इस प्रकार हैं- ३११ दर्शन पडिमा : देव गुरु धर्म का सम्यक् चिन्तन करना, शंकादि दोषों से रहित होकर क्रियावादी अक्रियावादी आदि ३६३ पाखण्डियों के मतों की सम्यक् जानकारी एवं विधिपूर्वक सम्यग्दर्शन का पालन ही दर्शन पडिमा है। इसका कालमान आचार्यादि के कथनानुसार एक मास का माना जाता है। वत पडिमा : सम्यक्त्व की प्राप्ति के बाद पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत इन बारह व्रतों की सम्यक् आराधना ही व्रत पडिमा है। इसका कालमान दो मास का है। सामायिक पडिमा : सम्यग्दर्शन ओर अणुव्रत को स्वीकार करने के बाद ही गुणव्रत में सामायिक-समभाव की साधना की जाती है। इसका कालमान तीन मास का है। पौषध पडिमा : अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावास्या इन चतुर्पी में आहार का त्याग, शरीर के ममता का त्याग, अब्रह्मचर्य अथवा व्यापार का ल्याग करके पूर्ण पौषध व्रत का पालन करना ही पौषध पडिमा है। इसकी कालमर्यादा चार मास की है। नियम पडिमा (कायोत्सर्ग पडिमा) : इस पडिमा में साधक पांच नियमों का पालन करता है। १) स्नान नहीं करना। २) रात्रि भोजन नहीं करना, ३) धोती की लांग नहीं लगाना, ४) रात्रि में मैथुन की मर्यादा करना, दिन में पूर्ण ब्रह्मचर्य पालना और ५) दिन में ही भोजन करना। इसका कालमान पांच मास का है। दिगम्बर परम्परा में इस पडिमा को 'सचित्तत्यागपडिमा' कहते हैं। ब्रह्मचर्य पडिमा : इसमें पूर्ण ब्रह्मचर्य का विधान है। इसकी कालमर्यादा दो प्रकार की है-जघन्य एक रात्रि की और उत्कृष्ट छह मास। दिगम्बर परम्परा में इसे “रात्रि भोजन त्याग पडिमा अथवा दिवामैथुन त्याग पडिमा" कहते हैं। सचित त्याग पडिमा : इसमें सचित्त का सर्वथा त्याग किया जाता है किंतु आरंभ का त्याग नहीं किया जाता। इसका जघन्य काल एक रात्रि और उत्कृष्ट काल सात मास का है। दिगम्बर परम्परा में इसे 'ब्रह्मचर्य पडिमा' कहते हैं। जैन साधना पद्धति में ध्यान योग १८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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