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________________ कोटि की स्थिति वाले होते हैं। यथालन्दक साधना स्वीकार करने के काल से लेकर जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट आयु बीते वर्षों से हीन पूर्व कोटि प्रमाण होती है। वे विक्रिया, चारण और क्षीरास्ववित्व आदि लब्धियों के धारक होते हैं। किन्तु रागाभाव के कारण उनका सेवन नहीं करते हैं। गच्छ प्रतिबद्ध यथालन्दक मुनि एक योजन में विहार करते हैं। पराक्रमी आचार्य क्षेत्र से बाहर जाकर उपदेश भी देते हैं। परिज्ञान या धारणा गुणसंपन्न एक, दो या तीन यथालन्दक मुनि गच्छ बाहर जाकर प्रश्नादि भी करते हैं और पुनः अपने क्षेत्र में आकर भिक्षा ग्रहण करते हैं। शक्तिहीन आचार्य उपाश्रय में ही सत्रार्थ पौरुषी करके भिक्षा ग्रहण करते हैं। शेष सब क्रियायें जिनकल्पिक मुनियों की तरह हैं। पडिमा साधना पद्धति आगम युग की यह भी एक विशिष्ट साधना पद्धति है। श्रमण और उपासक (श्रावक) के लिये आगम में भिक्खु पडिमा और उपासक पडिमा का उल्लेख है। पडिमा शब्द अनेक अर्थों में प्रतिपादित किया गया है-३०२ १) तपस्या का विशेष मापदंड, २) साधना का विशेष नियम, ३) कायोत्सर्ग, ४) मूर्ति और ५) प्रतिबिम्ब। वृत्तिकार ने पडिमा का अर्थ प्रतिपत्ति, प्रतिज्ञा ओर अभिग्रह किया है। यहाँ पडिमा शब्द का अर्थ साधना का मापदंड और अभिग्रह ही लिया गया है। साधना की भिन्न-भिन्न पद्धतियों को स्पष्ट करने के लिये अनेक रूप में पडिमाओं का उल्लेख किया जा रहा है-समवायांगसूत्र में वैयावृत्यकर्म की ९१ या ९२ पडिमायें वर्णित हैं। स्थानांगसूत्र में दो-दो के रूप में अनेक पडिमाओं का उल्लेख है। समवायांग एवं अन्य आगम में श्रमण की बारह पडिमा और उपासक की ग्यारह पडिमा का वर्णन है। इन सब पडिमाओं का स्वरूप निम्नलिखित बारह भिक्खु पडिमा :३१० मासिया भिक्खु पडिमा : प्रथम पडिमाधारी भिक्खु एक दत्ति अन्न की और एक दत्ति पानी की लेता है। साधु के पात्र में दाता द्वारा दिए जाने वाले अन्न जल की धारा जब तक अखंड बनी रहे, उसका नाम दत्ति है। धारा खण्डित होते ही दत्ति की समाप्ति हो जाती है, इसका कालमान एक मास का होता है। ____दोमासिया जाव सत्तमासिया भिक्खु पडिमा : दो से लेकर सातवीं पडिमा तक का वर्णन किया जा रहा है। इनमें क्रमशः एकेक दत्ति अन्न की और एकेक दत्ति पानी की वृद्धि होती जाती है। इन सब भिक्षु पडिमा का कालमान एक-एक मास का है। दत्तियों की वृद्धि के कारण द्विमासिकी त्रिमासिकी यावत् सप्तमासिकी भिक्खु पडिमा कहते हैं। प्रथम सत्तरात्रिन्दियाभिक्खुपडिमा : यह आठवीं भिक्खु पडिमा है। यह सात दिन की होती है। इसमें एकान्तर चौविहार उपवास किया जाता है अथवा सात दिन जैन साधना पद्धति में ध्यान योग १८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002078
Book TitleJain Sadhna Paddhati me Dhyana yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1991
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Dhyan, & Philosophy
File Size10 MB
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